

अनुपमा शर्मा:-
*नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।*
*नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्मताम्॥*
त्रिस्त्रोता देवी शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल में जलपाईगुड़ी जिले के फलकटा के शालबाड़ी गाँव में तिस्ता नदी के तट पर स्थित है । यहीं माता सती के बाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। यहाँ की शक्ति स्वरूपा देवी भ्रामरी हैं इसलिये उन्हें भ्रामरी या भौंरा कहा जाता है और भगवान शिव को ईश्वर कहा जाता है।
इस शक्तिपीठ के संदर्भ में एक पौराणिक कथा है कि अरुणासुर नाम का एक अत्यंत दुष्ट ,शैतान राक्षस इस संसार में रहता था। जब वह बलवान हो गया तो उसने देवताओं से लड़ना प्रारम्भ कर दिया इस कारण देवताओं को स्वर्ग छोड़ना पड़ा। उसने देवताओं के कुल को भी नहीं छोड़ा उनको भी परेशान करना शुरू कर दिया। बहुत दुखी होने के पश्चात देवगण माता भ्रामरी की शरण में पहुँचते हैं। तब माता जगतजननी सती ने स्वयं को मधुमक्खियों के रूप में बदल उस दुष्ट राक्षस का संहार किया और देवताओं की रक्षा की।
*श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्ट साधनम् ।*
*मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बा स्तुतिः प्रकाश्यते ॥*
यह शक्तिपीठ माता भ्रामरी का महत्वपूर्ण हृदय चक्र माना जाता है। जिसमें १२ पंखुड़ियाँ हैं यह किसी भी भी प्रकार की बीमारी से उबरने के लिए मनुष्य की ढाल या ऐंटीबॉडी के रूप में काम करता है। यहाँ कुण्डलिनी साधना का मुख्य चक्र है। शास्त्रों के अनुसार भ्रामरी देवी मनुष्यों को किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचाने के लिए इस चक्र में विद्यमान हैं। यहाँ भक्त अपनी- अपनी मनोकामनाओं (मोक्ष, अर्थ, रोगों से मुक्ति, वाहन खरीदने, ज्ञान बढ़ाने ) की पूर्ति हेतु यहाँ आते हैं।
इस शक्तिपीठ मन्दिर का निर्माण लाल रंग से किया गया है। यहाँ माता भ्रामरी व भगवान ईश्वर की मूर्ति विराजमान है। यहाँ आश्विन मास(सितम्बर-अक्टूबर) की नवरात्रि विशेष रूप से मनाई जाती है
*दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तोः*
*स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।*
*दारिद्र्य दुःख भयहारिणि का त्वदन्या*
*सर्वोपकार करणाय सदार्द्रचित्ता ।।*
