अनुपमा शर्मा:-


*ॐ जयत्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि।*
*जय सर्व गते देवि काल रात्रि नमोस्तुते।।*
कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास और गुवाहाटी से ८ किलोमीटर दूर तथा कामाख्या से १० किलोमीटर दूर नीलाचल पर्वत पर स्थित है। यह शक्तिपीठ माता सती के अंग गिरने से स्थापित हुआ है। इस शक्तिपीठ का तांत्रिक जगत में बहुत बड़ा स्थान है। प्राचीन काल का यह सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र साधना सिद्धि का सर्वोच्च स्थान है। पूर्वोत्तर का मुख्य द्वार कहे जाने वाला असम की राजधानी दिसपुर से ६किलोमीटर की दूरी स्थित नीलांचल(नील शैल) पर्वतमालाओं पर स्थित माँ भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ विराजमान है। यह शक्तिपीठ ५१(इक्यावन)शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहाँ माता भगवती सती की महामुद्रा(योनिकुण्ड) स्थित है। इस शक्तिपीठ के बारे में मान्यता है कि बाहर से आने वाले जो भी भक्त जीवन में तीन बार इस स्थान के दर्शन कर लेते हैं उन्हें सांसारिक भव बन्धनों से मुक्ति मिल जाती है।
*धूम्रनेत्र वधे देवि धर्म कामार्थ दायिनि।*
*रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।*
यह शक्तिपीठ बड़ा चमत्कारी है । यह शक्तिपीठ अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। यह शक्तिपीठ ,शक्तिपीठों का महापीठ कहा जाता है।इस मंदिर में आपको कोई भी विग्रह दिखाई नहीं पड़ता। मन्दिर में एक कुण्ड बना है जो हमेशा फूलों से ढका रहता है। इस कुण्ड से हमेशा जल निकलता रहता है। यहाँ माता का योनि भाग गिरा था इस वजह से यहाँ माता की योनि की पूजा की जाती है और योनि भाग के यहाँ होने से माता यहाँ रजस्वला भी होती हैं। अम्बुबाची मेला के दौरान ब्रह्मपुत्र का पानी तीन दिन के लिये लाल हो जाता है। पानी का यह लाल रंग माता कामाख्या के मासिक धर्म की वजह से होता है। मन्दिर में भक्तों को प्रसाद में लाल रंग नक कपड़ा दिया जाता है। कहते हैं जब माता तीन दिन मासिक धर्म में होती हैं तब मन्दिर में सफेद रंग का कपड़ा बिछा दिया जाता है और जब तीन दिन बाद मन्दिर के दरवाज़े खोले जाते हैं तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा मिलता है इस वस्त्र को अम्बुबाची वस्त्र कहते हैं। यही कपड़ा(वस्त्र) प्रसाद रूप में भक्तों को दिया जाता है।
काली व माता त्रिपुरसुंदरी के बाद माता कामाख्या की तांत्रिकों में अधिक मान्यता है । माता कामख्या को भगवान भोलेनाथ की नववधू के रूप में पूजा जाता है। वह मुक्ति को देने वालीं व समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाली हैं।
माता का मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है। पहला हिस्सा(भाग) सबसे बड़ा है जिसमें किसी को भी जाने नहीं दिया जाता, वहीं दूसरे भाग में माता के दर्शन होते हैं जहाँ एक पत्थर से पानी निकलता रहता है। माता तीन दिन रजस्वला होती हैं इसलिए मन्दिर के पट तीन दिन बन्द रहते हैं। तीन दिन बाद बड़े धूम – धाम से मन्दिर के कपाट खोले जाते हैं।
*देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवी परं सुखं।*
*रूपं धेहि जयं देहि यशो धेहि द्विषो जहि।।*
