अनुपमा शर्मा:-

* जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी*
*दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते ।*
जब भी मंदिरों की बात होती है तो अक्सर हम दक्षिण भारत के मंदिरों की भव्यता एवं वास्तुकला की बात करते हैं। लेकिन भारत के कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ स्थित मंदिरों का महत्व उस स्थान में निवास करने वाले हिंदुओं के लिए बहुत ज्यादा है। इनमें से कई मंदिर तो ऐसे हैं जिनकी जानकारी देश के अधिकांश लोगों को नहीं होती है। ऐसा ही एक मंदिर मेघालय के पश्चिम जयंतिया हिल्स जिले में स्थित है। मेघालय का यह मंदिर नर्तियांग दुर्गा मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। जयंतिया पहाड़ी के हिन्दू इस मंदिर को माँ दुर्गा का स्थायी निवास मानते हैं।
यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है अतः इस मंदिर का इतिहास भी युगों पहले राजा दक्ष के यज्ञ से जुड़ा हुआ है। जब राजा दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान हुआ तो माता सती यज्ञ कुंड में प्रवेश कर गईं और अपने प्राण त्याग दिए। इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने माता सती की मृत देह को लेकर भयानक तांडव करना शुरू कर दिया। उन्हें शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती की मृत देह को की भागों में विभक्त कर दिया। इस दौरान माता सती की बाईं जंघा जयंतिया पहाड़ी के नर्तियांग में गिरी थी, अतः यहाँ शक्ति पीठ स्थापित हुआ।
जयंती शक्तिपीठ जहाँ माता सती की बायीं जाँघ का निपात हुआ था  शिलांग से ५३ किलोमीटर दूर जयंतिया पर्वत के बाउर भाग में स्थित है। यहाँ शक्ति जयंती व शिव क्रमदीश्वर हैं । 
नर्तियांग के इस दुर्गा मंदिर में माँ दुर्गा जयंतेश्वरी के नाम से जानी जाती हैं। मंदिर की स्थापना के विषय में उपलब्ध जानकारी के अनुसार इसकी स्थापना लगभग 600 वर्ष पूर्व हुई थी। उस समय जयंतिया साम्राज्य के शासक राजा धन मानिक हुआ करते थे। उन्होंने नर्तियांग को जयंतिया शासनकाल की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था। कहा जाता है कि एक रात राजा को स्वप्न हुआ। इस स्वप्न में स्वयं माँ दुर्गा ने राजा को नर्तियांग क्षेत्र के महत्व के बारे में बताया और कहा कि राजा इस क्षेत्र में एक मंदिर का निर्माण करें। माँ दुर्गा की आज्ञा पाकर राजा ने नर्तियांग में माँ दुर्गा के मंदिर का निर्माण कराया जो जयंतेश्वरी मंदिर के नाम से जाना गया।
जहाँ-जहाँ माता सती के अंग ,वस्त्र, आभूषण गिरे वह स्थान शक्तिपीठ बन पवित्र स्थान बन गये। भारत के पूर्वी राज्य मेघालय में गारी, ख़ासी, जयंतिया पहाड़ियाँ हैं इन्हीं में से एक जयंती पहाड़ी पर  जयंती शक्तिपीठ स्थित है।
*जयंती सर्वोत्कर्षेण वर्तते इति ‘जयंती’ ।*
विद्वानों में इस शक्तिपीठ को लेकर मतभेद है कुछ विद्वान बांग्लादेश के सिल्हैट जिले जयंतिया परगना के भोरभोग गाँव कालाजोर के खासी पर्वत पर जयंती मन्दिर( शक्तिपीठ )स्थित है।
रेल मार्ग से यात्रा करने पर श्रद्धालुओं को गोलपाड़ा व लुमडिंग टाउन है यहाँ से सड़क मार्ग से आप इस शक्तिपीठ की यात्रा कर सकते हैं।
शक्तिपीठ  (ऊर्जा से ओतप्रोत) वह स्थान हैं जहाँ आप बैठकर ईश्वर का ध्यान व साधना कर सकते हैं।  जब हम ध्यान करते हैं तो इन स्थानों पर सकारात्मक ऊर्जा इकट्ठा हो जाती है।  यह ऊर्जा पेड़, पौधे, खम्बे, पत्थर सभी अवशोषित करते हैं।  ये शक्तिपीठों  भारत व भारत से बाहर भी  हैं।
*या देवी सर्वभूतेषु दया रूपेण संस्थिता ।*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।*

Spread the love

By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.