अनुपमा शर्मा:-

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ।।
माता सती के द्वारा अपने शरीर को पिता के यहाँ यज्ञ होम करने तथा पौराणिक कथाओं से प्राचीन संस्कृत साहित्य को विकसित करने में बहुत बल मिला । भारत की संस्कृति पर इसकी स्पष्ट छाप है । इस घटना(माता सती के द्वारा दाह) के बाद शक्तिपीठों की अवधारणा का विकास हुआ और शक्तिवाद मजबूत हुआ । जहाँ- जहाँ सती के अंग, आभूषण एवं वस्त्र गिरे वहाँ शक्तिपीठ स्थापित हुए। ऐसा ही एक शक्तिपीठ
बांग्लादेश के शिकारपुर गाँव में बरिसल(बारीसाल)जिले से उत्तर में इक्कीस(२१ )किलोमीटर दूर सुनंदा नदी(सोंध) के किनारे माँ सुगंधा शक्तिपीठ स्थित है। यह एक हिन्दू मन्दिर है । शाक्त सम्प्रदाय के लोगों के लिये यह पवित्र स्थान है । यहाँ माता सती की नासिका(नाक) गिरी थी।
*सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।*
इक्यावन शक्तिपीठ हैं जो संस्कृत के इक्यावन अक्षरों से जुड़े हुए हैं। हर शक्तिपीठ मन्दिर में भैरव व शक्ति के लिये मन्दिर हैं। इसकी शक्तिपीठ की शक्ति को सुनंदा और शिव या भैरव को त्र्यंम्बक कहते हैं। यह मंदिर उग्रतारा के नाम से प्रसिद्ध है। यह शक्तिपीठ परिसर पत्थरों से बना हुआ है मन्दिर की दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र बने हुए हैं । मन्दिर को देखकर समझा जा सकता है कि यह शक्तिपीठ मन्दिर अति प्राचीन है। इस शक्तिपीठ का नाम शरतचंद्र की बाँग्ला कविता ‘अन्नादामंगल’ में भी मिलता है। यहाँ स्थापित मूर्ति चोरी हो गयी और उसके स्थान पर नयी मूर्ति की स्थापना हुई है। यह मूर्ति बौद्ध धर्म तंत्र से सम्बंधित मानी जाती है। उग्रतारा सुगंधा देवी के हाथ तलवार, खेकड़ा, नीलपाद, और गले में नरमुण्डों की माला है । कार्तिकेय,गणेश,ब्रह्मा,विष्णु एवं शिव उनके ऊपर स्थापित हैं । प्राचीन समय में बंगाल में तंत्र साधना का व्यापक प्रचार – प्रसार था । बंगाल में अन्य कई देवियों के भी मन्दिर हैं । आगम शास्त्रानुसार अक्सर मन्दिर की छाया बहते पानी पर नहीं गिरती लेकिन यह मंदिर इसके विपरीत है यहाँ सुनंदा नदी पर मन्दिर की छाया पड़ती है । । महाशिवरात्रि पर यहाँ मेला लगता है एव नवरात्र में भी यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।
इस शक्तिपीठ के बारे में एक कथा है —
शिकारपुर गाँव में पंचानन चक्रवर्ती नाम के एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण रहते थे। एक बार में स्वप्न में माता काली ने उन्हें दर्शन दिये और कहा कि मैं सुगंधा के गर्भ में शिलारूप में हूँ तुम मुझे वहाँ से निकाल कर ले आओ और मेरी स्थापना कर पूजा करो। ब्राह्मण पंचानन चक्रवर्ती ने ऐसा ही किया। वह स्वप्न में दिखने वाले स्थान पर गये और वहाँ से मूर्ति लाकर स्थापना कर पूजा – अर्चना करने लगे । धीमे धीमे यह जाग्रत एवम पवित्र स्थान प्रसिद्ध हो गया।
शक्तिपीठ तक पहुँचने के लिये खुलना से स्टीमर द्वारा बरीसाल पहुँचा जाता है और फिर वहाँ से सड़कमार्ग से शिकारपुर गाँव में पहुँचा जा सकता है।

*या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।*
