अनुपमा शर्मा:-
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
कात्यानी के रूप में देवी सती को समर्पित, 51 शक्तिपीठ मंदिरों में से एक है यह शक्तिपीठ। कात्यायनी शक्तिपीठ मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृन्दावन में रंग जी के मंदिर से पहले स्थित है । यहाँ सती के केश कुंडल व चूड़ामणि गिरे थे। यहाँ माँ सती की मूर्ति को ‘उमा’ और भगवान शिव को ‘भैरव’ यानी भूतेश (जीवों के भगवान) कहा जाता है।
कात्यायनी पीठ मंदिर बाहर से सफेद संगमरमर से बना है और विशाल खंभे मंदिर को सहारा देते हैं। खंभे काले पत्थर से बने हैं और मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। मुख्य प्रांगण की ओर जाने वाली सीढ़ियों के ठीक बगल में, दो सुनहरे रंग के शेर खड़े हैं और वे माँ दुर्गा के वाहन का प्रतिनिधित्व करते हैं। मंदिर में देवी को एक तलवार मिली है जिसे उचवल चंद्रहास के नाम से जाना जाता है।
यह शक्तिपीठ ज्ञात शक्तिपीठों में अति प्राचीन है सिद्धपीठ है।
इस शक्तिपीठ के बारे में कहा जाता है कि सिद्ध पुरुष श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाराज के शिष्य १००८योगी श्रीयुत स्वामी केशवानंद ब्रह्मचारी महाराज ने अपनी कठोर साधना द्वारा भगवती के प्रत्यक्ष आदेशानुसार इस लुप्त स्थान पर स्थित श्री कात्यायनी शक्तिपीठ का पुनर्निर्माण कराया था।
माँ कात्यायनी पीठ मंदिर का निर्माण फरवरी 1923 में स्वामी केशवानंद ने करवाया था। मां कात्यायनी के साथ इस मंदिर में पंचानन शिव, विष्णु, सूर्य तथा सिद्धिदाता श्री गणेशकी मूर्तियां हैं। लोग मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण देखते ही श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो जाते हैं और दिल और दिमाग में शांति पाते हैं।
कात्यायनी शक्तिपीठ वृंदावन का आद्य शक्तिपीठ है । माता कात्यायनी वृंदावन की अधिष्ठात्री हैं । राधारानी ने गोपियों के साथ भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिये माता कात्यायनी की पूजा की थी माता ने प्रसन्न हो उन्हें वरदान दे दिया
माता ने प्रकट होकर उन्हें कहा कि भगवान कृष्ण यहीं आयेंगे तब तक तुम यहीं आराधना करो। माता ने उन्हें भक्ति की स्थिति का आशीर्वाद दिया।
लेकिन भगवान कृष्ण एक और गोपियाँ अनेक ऐसा सम्भव कैसे होता इसलिए भगवान कृष्ण ने इस वरदान को सत्य सिद्ध करने के लिये महारास किया।
राधा रानी ने भी भगवान कृष्ण को पाने के लिये माता की आराधना की थी।
*कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरी।*
*नंदगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः ।।*
इस शक्तिपीठ मन्दिर की खास बात यह है कि यहाँ पाँच अलग-अलग सम्प्रदायों के पाँच अलग-अलग देवताओं की पूजा की जाती है।
इस शक्तिपीठ पर आज भी कुँवारे लड़के और लड़कियाँ नवरात्रि के अवसर पर मनचाहा वर,और वधु प्राप्त करने के लिये माता की आराधना व दर्शन करते हैं।
*पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानु सारिणीम्।
तारिणींदुर्गसं सारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥*
जो भी सच्चे हृदय से माता की आराधना करता है माता उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करती है।
भगवान कृष्ण ने भी माता कात्यायनी की कंस वध से पूर्व यमुना किनारे बालू की प्रतिमा बनाकर पूजा की थी।
*सर्वबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्यै सुतान्विताः मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः।।*