अनुपमा शर्मा:-
* यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।*
*यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह।।*
यह शक्तिपीठ नारायणी के रूप में देवी सती को समर्पित है, जो 51 शक्ति पीठ मंदिरों में से एक है।  देवी माँ को “माँ नारायणी” (नारायण की पत्नी) और भगवान शिव को “संघरोर संहार” (विनाशक) के रूप में हैं। कभी-कभी देवी को कन्या कुमारी या भगवती अम्मन के नाम से भी जाना जाता है।
पास के एक गाँव में संहारा भैरव मौजूद हैं। सुचिन्द्रम में, उन्हें स्थानीय रूप से स्थानु शिव कहा जाता है। सुचिन्द्रम शक्तिपीठ हिंदुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य कन्याकुमारी में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि ‘सुचि’ शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘शुद्ध होना’। सुचिन्द्रम शक्ति पीठ को ‘थानुमालायन’ या स्थानुमलायन मंदिर भी कहा जाता है।
सुचिन्द्रम में श्री स्थानुमलायन को समर्पित एक मंदिर है जो शिव, विष्णु और ब्रह्मा की संयुक्त शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है।
यह देश के उन कुछ मंदिरों में से एक है जहाँ त्रिदेवों की पूजा की जाती है। मंदिर में एक सुंदर गोपुरम, संगीतमय स्तंभ हैं।
तमिलनाडु में कन्याकुमारी के ‘त्रिसागर’ संगम स्थल से १३किलोमीटर दूरी पर तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर है, जहाँ पर माता की ऊपरी दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे। इसकी शक्तिपीठ की शक्ति हैं नारायणी और भैरव को संहार या संकूर कहते हैं।  शुचींद्रम में स्थित स्थाणु शिवजी के मंदिर में ही स्थित है ये शक्तिपीठ।
मान्यता है कि यहाँ देवी अभी तक तपस्यारत है। महर्षि गौतम के शाप से इंद्र को यहीं मुक्ति मिली थी और वे शुचिता अर्थात पवित्र हो गए थे । इसीलिए इसका नाम शुचींद्रम पड़ा। शुचींद्रम क्षेत्र को ज्ञानवनम् क्षेत्र भी कहते हैं। मान्यता है कि यहीं पर देवी ने राक्षस बाणासुर का वध किया था। यहाँ के मंदिर में नारायणी रूप में माता की भव्य प्रतिमा है और उनके हाथ में एक माला है। इसी मंदिर में भद्रकाली का मंदिर भी स्थित है जो देवी सती की सखी भी मानी जाती हैं।
*दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय ।*
*धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां हिताय वै।।*
पौराणिक कथा के अनुसार बाणासुर ने घोर तपस्या करके भगवान शिव से अमरत्व का वरदान माँगा शिवजी ने कहा कि वह कन्याकुमारी के अतिरिक्त सभी जगहों पर अजेय होगा। वरदान प्राप्त कर वह उत्पात करने लगा तथा देवताओं को भी परास्त कर दिया । देवता त्राहि-त्राहि करते हुए भगवान विष्णु की शरण में चले गये और उनकी सहमति से महायज्ञ किया जिससे देवी भगवती दुर्गा के अंश से एक कन्या प्रकट हुई। उस देवी ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए दक्षिणी समुद्र पर तप किया। भगवान शिव ने उन्हें   वांँछित  वरदान दिया इससे देवताओं को चिंता हुई कि अगर भगवान शिव का विवाह इस कन्या के साथ हो गया तो वाणासुर का वध कैसे होगा? इसलिए नारद जी भगवान शिव को शुचींन्द्रम तीर्थ में प्रपंच में उलझा दिया, जिससे विवाह का महूर्त आगे निकल गया। इस वजह से शिव वहाँ स्थाणु रूप में विराजमान हो गये। देवी ने पुनः तप प्रारम्भ कर दिया और मान्यता है कि आज तक  देवी कन्यारूप में तपस्यारत हैं। इधर वाणासुर के दूतों ने जब देवी के सौंदर्य का बखान किया तो वाणासुर ने देवी के पास विवाह प्रस्ताव भेजा देवी ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया तो वाणासुर क्रोधित हुआ और देवी से युद्ध  करना शुरू कर दिया । और अंत में  देवी के हाथों वाणासुर का वध हो गया।  मान्यता के अनुसार देवी ने इसी स्थान पर वाणासुर का वध किया था और यहीं पर देवराज इंद्र को महर्षि गौतम के शाप से मुक्ति मिली थी। यहाँ के मंदिर में नारायणी माँ का भव्य एवं भावोत्पादक विग्रह विराजमान है । उनके हाथ में एक माला है। इसी मंदिर में भद्रकाली देवी का भी मन्दिर है ये देवी नारायणी की सखी हैं।
कन्याकुमारी में स्नान करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ उपासना करने से वैदिक  व अन्य मन्त्र सिद्ध होते हैं। नवरात्रि, चैत्र पूर्णिमा, आषाढ़ एवं आश्विन अमावस्या, शिवरात्रि आदि विशेष अवसरों पर यहाँ उत्सव होते हैं।
*रसे रुपे गन्धे शब्दे स्पर्शे योगिनी।*
*सत्त्वं रजस्तमश्‍चैव रक्षेन्नारायणी सदा।।*

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.