अनुपमा शर्मा :-
*दृश्यन्ते रथमारूढ़ा देव्या:क्रोध समाकुलाः*
*शंख चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम् ।।*
देवी वाराही को समर्पित पंचसागर माँ वाराही शक्ति पीठ मंदिर, उत्तर प्रदेश के वाराणसी के पास स्थित माता सती के 51वें शक्तिपीठ मंदिर में से एक है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव देवी सती के शरीर को अपने साथ ले जा रहे थे तब माता सती के निचले दाँत जो कि कटे हुए थे। इस विशेष पवित्र स्थान पर गिर गए । देवी माँ की मूर्ति को वाराही के नाम से जाना जाता है और भगवान शिव को महारुद्र (क्रोधित व्यक्ति) की उपाधि प्रदान की गई थी, जिसका अर्थ है क्रोधी व्यक्ति। वाराही शब्द को स्त्री शक्ति के रूप में जाना जाता है जिसे दूसरे शब्दों में भगवान विष्णु के सूअर अवतार के रूप में जाना जाता है।
हिन्दू धर्म में वाराही माता को तीन वर्गों में पूजा होती है शक्तिज्म (देवी की पूजा होती है),शैविज्म(भगवान शिव की पूजा की जाती है)और वैष्णविज्म(भगवान विष्णु की पूजा की जाती है ।) पुराणों में भी वाराही का वर्णन किया गया है। पंच सागर में माता सती के निचले दाँत गिरे थे। इस शक्तिपीठ की शक्ति हैं वाराही और भगवान शिव (भैरव)को महारुद्र कहते हैं । इस स्थान को लेकर भी विद्वानों में मतभेद हैं । कुछ लोग इसे वाराणसी में तो कुछ लोग छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में मानते हैं दंतेवाड़ा मन्दिर को दंतेश्वरी मन्दिर कहते हैं। कुछ लोग को इस जगह को लेकर यह मान्यता है कि यहाँ भी माता सती के दाँत गिरे थे। इसलिए इसे शक्तिपीठ मानते हैं।
*दक्षिणेवतु वाराही नैऋत्यां खड्गधारिणी ।*
*प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी।।*
इस शक्ति पीठ की कला एवं वास्तुकला मनमोहक है। इस शक्ति पीठ के निर्माण में जिस पत्थर का उपयोग किया गया है वह वाकई अलग है और जब इस पर सूर्य की रोशनी पड़ती है तो वह चमकने लगता है। शक्तिपीठ की छवि जब उसके ठीक बगल में स्थित जलाशय में गिरती है तो जो मनमोहक दृश्य प्रस्तुत होता है वह मंत्रमुग्ध कर देने वाला होता है। इस स्थान का इतिहास उस समय का है जब कहा जाता है कि माँ सती के निचले दाँत इस स्थान पर गिरे थे। वैकल्पिक रूप से, मत्स्य पुराण के अनुसार यह भी माना जाता है कि माँ वाराही को भगवान विष्णु के अवतार – वराह (सूअर रूप) से भगवान शिव ने एक राक्षस को मारने के लिए बनाया था, जिनकी मुख्य रूप से रात्रि में पूजा की जाती है।
देवी वाराही स्त्री ऊर्जा या वराह की शक्ति भगवान विष्णु के सुअर अवतार हैं। इनके एक बौना सिर है वह अपने हाथ में एक चक्र, शंख व तलवार लिये रहती हैं। इस शक्तिपीठ मन्दिर की खासियत है कि यह सिर्फ दो घण्टे के लिए ही खुलता है सुबह 5:30से7:30 के बीच। बाकी पूरे दिन मन्दिर बन्द रहता है। इस शक्तिपीठ की कला और निर्माण बड़ा आकर्षक है। इसके निर्माण में जिस पत्थर का उपयोग किया गया है वह बहुत चमकदार है जब उस पर धूप पड़ती है तो उसकी छवि जलाशय में पड़ती है यह दृश्य बड़ा अद्भुत व मंत्रमुग्ध करने वाला है।
*रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पृशे च योगिनी।*
*सत्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा ।।*
वाराही माँ अष्ट मातृकाओं में से एक है, जो हिंदू धर्म में सात या आठ मातृ देवियों का एक समूह है। एक सूअर के सिर के साथ, वाराही भगवान विष्णु के सूअर अवतार, वराह की शक्ति (स्त्री ऊर्जा, या कभी-कभी, पत्नी) है .. मार्कंडेय पुराण से शुंभ-निशुंभ वध के संदर्भ में देवी महात्म्य में इसका अच्छी तरह से वर्णन किया गया है धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, मातृका देवी देवताओं के शरीर से शक्ति के रूप में प्रकट होती हैं। शास्त्र कहते हैं कि वराह से वरही की उत्पत्ति हुई। उसका रूप सूअर जैसा है, वह चक्र धारण करती है और तलवार से लड़ती है। पुराण में वर्णित युद्ध के बाद, मातृकाओं ने अपने शिकार के खून पर नृत्य किया और नशे में धुत्त हो गईं।
*जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला ।*
*मूढ़ता हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥*