अनुपमा शर्मा:-

*मातः परात्परे देवि सर्वज्ञानमयीश्वरि ।*
*कथ्यतां मे सर्वपीठशक्तिभैरवदेवताः ॥*
दंतेश्वरी शक्तिपीठ  देवी दंतेश्वरी को समर्पित है और इक्यावन शक्ति पीठ मंदिरों में से एक है ।  यह दंतेश्वरी शक्तिपीठ  छत्तीसगढ़ के जगदलपुर तहसील से 80 किमी दूर स्थित शहर दंतेवाड़ा में स्थित है।
लोकमान्यता के अनुसार यह वह स्थान है जहाँ माता सती के दाँत गिरे थे। यहाँ देवी सती की मूर्ति को माँ दंतेश्वरी और भगवान शिव को कपालभैरव के रूप में पूजा जाता है। दंतेवाड़ा का मंदिर एक साधारण मंदिर है जिसमें काले पत्थर पर देवी की छवि उकेरी गई है। दुनिया भर में इक्यावन शक्तिपीठ हैं । इनमें से चार को आदि शक्तिपीठ और अठारह को महाशक्तिपीठ माना जाता है। दंतेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर
शक्तिपीठों की कथा –  शक्तिपीठ देवी माँ के मंदिर या वह दिव्य स्थान हैं जहाँ शक्ति या ऊर्जा का भण्डार है । भगवान ब्रह्मा ने शक्ति और शिव को प्रसन्न करने के लिए एक यज्ञ किया देवी शक्ति शिव से अलग होकर प्रकट हुईं और ब्रह्मांड के निर्माण में ब्रह्मा की मदद की। ब्रह्मा ने शक्ति को शिव को वापस देने का निर्णय लिया। इसलिए उनके पुत्र दक्ष ने सती के रूप में शक्ति को अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त करने के लिए कई यज्ञ किए। दक्ष, अपनी बेटी सती के भगवान शिव से विवाह करने से प्रसन्न नहीं थे । इसलिए उन्होंने अपने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित करने से इनकार कर दिया। सती जो अपने पिता के इस यज्ञ में  जाना चाहती थीं  भरोसा करते हुए शिव ने अपनी पत्नी को यज्ञ में जाने की अनुमति दी। वहाँ दक्ष ने शिव का अपमान किया। अपने पति के प्रति अपने पिता के अपमान को सहन करने में असमर्थ सती ने आत्मदाह कर लिया। शिव ने वीरभद्र के अपने क्रोधपूर्ण रूप में यज्ञ को नष्ट कर दिया और दक्ष का वध कर दिया। भगवान शिव सती को ले गए और दुःख में पूरे आर्यावर्त में घूमते रहे, शिव का क्रोध और शोक, विनाश के दिव्य नृत्य, तांडव के रूप में प्रकट हुआ। तांडव को रोकने के उद्देश्य से भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र का प्रयोग किया, जिससे सती का शव कट गया। सती के शरीर के हिस्से पूरे भारतीय और पड़ोसी देश में विभिन्न स्थानों पर गिरे और इन पवित्र स्थलों को शक्तिपीठ कहा जाने लगा।
एक दूसरी कहानी 
वारंगल के नरेश के छोटे भाई अन्न्मदेव से जुड़ी है जिन्हें वारंगल राज से निर्वासित कर दिया गया था। जब वे गोदावरी नदी को पार कर रहे थे उस दौरान उन्हें नदी में ही मां दंतेश्वरी की प्रतिमा मिली। तट पर अन्न्म देव ने उस प्रतिमा को रखा और पूजा करने लगे। इसी दौरान देवी साक्षात प्रकट हुईं और अन्न्मदेव से कहा कि मार्ग पर आगे बढ़ते जाओ मैं तुम्हारे पीछे-पीछे चल रही हूँ। इसके साथ अन्न्मदेव ने अपने विजय अभियान की शुरूआत की और बस्तर सामाज्य की स्थापना हुई। टेमरा सती शिलालेख में राजा हरिशचंद्र देव (1324 ई) का उल्लेख मिलता है। बारसुर के युद्ध में अन्न्मदेव ने इसी हरिशचंद्र देव को मार डाला और नए राजवंश की बस्तर में स्थापना की।
*मंदिर निर्माण*
माँ दंतेश्वरी देवी  मंदिर को देश का 52वां शक्तिपीठ माना जाता है। यहाँ सबसे प्राचीन मंदिर का निर्मांण अन्न्मदेव ने करीब 850 साल पहले कराया था। डंकिनी और शंखिनी नदी के संगम पर स्थित इस मंदिर का जीर्णोद्धार पहली बार वारंगल से आए पाण्डव अर्जुन कुल के राजाओं ने करीब 700 साल पहले करवाया था। 1883 तक यहां नर बलि होती रही है। 1932-33 में दंतेश्वरी मंदिर का दूसरी बार जीर्णोद्धार तत्कालीन बस्तर की महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने कराया था।
*शक्तिपीठ का इतिहास*
केन्द्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार माता सती का दाँत  यहाँ गिरा था । इसलिए यह स्थल पहले दंतेवला और अब दंतेवाड़ा के नाम से चर्चित है। नदी किनारे आठ भैरव भाइयों का आवास माना जाता है  इसलिए यह स्थल तांत्रिकों की भी साधना स्थली भी है। कहा जाता है कि यहाँ आज भी बहुत से तांत्रिक पहाड़ी गुफाओं में तंत्र विद्या की साधना कर रहे हैं। यहाँ नलयुग से लेकर छिंदक नाग वंशीय काल की दर्जनों मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। मां दंतेश्वरी को बस्तर राज परिवार की कुल देवी माना जाता है, परंतु अब यह समूचे बस्तरवासियों की अधिष्ठात्री हैं ।
*दस दिवसीय आखेट नवरात्रि*
दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा के प्रधान पुजारी के अनुसार  शारदीय नवरात्रि व चैत्र नवरात्रि पर हर साल यहाँ हजारों मनोकामनाएं ज्योति कलश प्रज्वलित किए जाते हैं। हजारों भक्त पदयात्रा कर शक्तिपीठ पहुँचते हैं। दंतेश्वरी मंदिर प्रदेश का एकमात्र ऐसा स्थल है जहाँ फागुन माह में दस दिवसीय आखेट नवरात्रि भी मनाई जाती है, जिसमें हजारों आदिवासी शामिल होते हैं।
*सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।*
*शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।*

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.