अनुपमा शर्मा:–
*नानारत्न विचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी*
*मुक्ताहार विलम्ब मान विलसत् वक्षोजकुम्भान्तरी।*
*काश्मीराऽगरुवासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी,*
*भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥*
भारत से बाहर बहुत से शक्तिपीठ हैं जो अपनी भव्यता इतिहास महत्ता के लिए प्रसिद्ध हैं । इंद्राक्षी मंदिर देवी आदिशक्ति जो स्वयं प्रकृति हैं जो सुंदरता की परिभाषा हैं जिनसे सोलह श्रृंगार की कला समस्त स्त्रियों ने सीखी, उन्हीं माँ आदिशक्ति सती के नुपुर अर्थात घुंघरू (पायल) श्रीलंका के जाफना में आकर गिरे थे और इसी स्थान पर इन्द्राक्षी या शंकरी शक्तिपीठ की स्थापना हुई थी। यहाँ की शक्ति को माँ इंद्राक्षी, शंकरी और नागापुष्णी अम्मन के नाम से जाना जाता है तथा शिव या भैरव को रक्ष वंश यानी राक्षसों के ईश्वर राक्षसेश्वर या नायनार कहा जाता है।
नैनातिवु का अर्थ है द्वीप या मंदिरों का शहर। नागपूशनी का अर्थ है वह देवी जो साँपों को आभूषण के रूप में धारण करती है या जिसके आभूषण साँप हों । अम्मा का अर्थ है देवी । नैनातिवु नागापोशनी अम्मन श्रीलंका द्वीप पर एक प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर पार्वती को समर्पित है। यहां पार्वती को नागपूशनी और भुवनेश्वरी नाम से जाना जाता है तथा भगवान शिव को नयनार नाम से ।
*कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी*
*कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी।*
*मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी*
*भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥*
श्रीलंका का शंकरी देवी मंदिर, राजधानी कोलंबो से 250 किमी दूर त्रिकोणमाली नाम की जगह पर एक पहाड़ पर स्थित है । ये मंदिर पिछली कई सदियों से हिंदुओं का खासकर तमिलभाषी हिंदुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है।
हिंदु धर्म में माँ दुर्गा की आराधना करने वाले श्रद्धालुओं के लिए चैत्र नवरात्रि का बहुत महत्व होता है। अक्सर नवरात्रि में लोग शक्तिपीठ के दर्शन कर माँ से अपनी मनोकामना पूरी होने की प्रार्थना करते हैं । हिंदू धर्म के अनुसार शक्तिपीठ वो पवित्र जगह हैं जहाँ पर देवी के 51 अंगों के टुकड़े गिरे थे । ये शक्तिपीठ अब के भारत के अलावा, बांग्लादेश, पाकिस्तान, चीन, श्रीलंका और नेपाल में फैले हुए हैं । इस शक्तिपीठ के बारे में कहते हैं कि इसकी स्थापना रावण ने की थी ।
त्रिकोणमाली आने वाले लोग इसे शांति का स्वर्ग कहते हैं। श्रीलंका के त्रिकोणमाली जिले की आबादी 1 लाख हिंदूओं की है और मंदिर उनकी आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है. चैत्र और कार्तिक माह की नवरात्र पर यहाँ कई तरह के विशेष आयोजन होते हैं। इन आयोजनों में भारत खासकर तमिलनाडु से भी श्रद्धालु भी पहुंचते हैं। नवरात्रि में यहाँ पहुँचने वालों की संख्या रोजाना 500 से 1000 के बीच है, लेकिन अष्टमी और नवमी पर भीड़ बढ़ जाती है।
कुछ ग्रंथों में यहाँ माता सती का कंठ और नूपुर गिरने की बातें लिखी हुई हैं। यहाँ भगवान शिव के मंदिर को त्रिकोणेश्वर या कोणेश्वरम कहा जाता है ।
इसलिए इस स्थान का महत्व शिव और शक्ति दोनों की पूजा के लिये विशिष्ट है ।
इस मंदिर पर कई हमले हुए हैं
इस जगह का वर्णन आदि शंकराचार्य द्वारा निश्चित 18 महा-शक्तिपीठों में भी किया गया है । इस मंदिर पर कई बार हमले हुए, जिनसे मंदिर का स्वरूप बदलता रहा, लेकिन प्रतिमा को हर बार बचा लिया गया। चोल और पल्लव राजाओं ने इस मंदिर में काफी काम कराया है । इस भव्य मंदिर को 17वीं शताब्दी में पुर्तगाली आक्रमणकारियों ने ध्वस्त कर दिया था जिसके बाद मंदिर के एकमात्र स्तंभ के अलावा यहाँ कुछ भी नहीं था। स्थानीय लोगों के मुताबिक दक्षिण भारत के तमिल चोल राजा कुलाकोट्टन ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था वहीं 1952 में श्रीलंका में रहने वाले तमिल हिंदुओं ने इसे वर्तमान स्वरूप दिया था
*आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी*
*काश्मीरा त्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी।*
*कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी*
*भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥*