अनुपमा शर्मा:–
*सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।*
*गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते।।*
आनंदमयी शक्ति पीठ मंदिर को रत्नावली शक्ति पीठ के रूप में भी जाना जाता है यह मंदिर देवी कुमारी को समर्पित है और माँ सती के 51 शक्ति पीठों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि माँ सती का दाहिना कंधा यहाँ गिरा था । जब भगवान शिव ने अपनी पत्नी सती को खो दिया तो उसके दुःख से दुखी होकर उन्होंने उस शरीर को लेकर ताण्डव शुरू कर दिया तब भगवान विष्णु ने उस शरीर को काटने के लिए अपने ‘सुदर्शन चक्र’ का उपयोग किया था। यहाँ दाहिना कंधा गिरा तो इस जगह पर इस मंदिर का निर्माण कराया गया।
इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं
कुछ विद्वानों के अनुसार यह तमिलनाडु में तो कुछ के अनुसार पश्चिमी बंगाल में है।
रत्नावली आनंदमयी शक्ति पीठ खानाकुल-कृष्णानगर रत्नाकर नदी के तट पर जिला हुगलीमें स्थित है यहाँ माता सती की मूर्ति को ‘कुमारी’ कहा जाता है और भगवान शिव को ‘भैरव’ के रूप में पूजा जाता है। मंदिर के ठीक पास हुगली नदी बहती है। देशभर में 51 शक्तिपीठ हैं, इनमें से 4 को आदि शक्तिपीठ और 18 को महाशक्तिपीठ माना जाता है।
*प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।* *त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव।।*
शक्तिपीठों की कथा – शक्तिपीठ देवी माँ के मंदिर या दिव्य स्थान हैं। भगवान ब्रह्मा ने शक्ति और शिव को प्रसन्न करने के लिए एक यज्ञ किया। देवी शक्ति शिव से अलग होकर प्रकट हुईं और ब्रह्मांड के निर्माण में ब्रह्मा की मदद की। ब्रह्मा ने शक्ति को शिव को वापस देने का निर्णय लिया। इसलिए उनके पुत्र दक्ष ने सती के रूप में शक्ति को अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त करने के लिए कई यज्ञ किये। प्रजापति दक्ष अपनी बेटी सती के भगवान शिव से विवाह करने से नाखुश थे इसलिए उन्होंने अपने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित करने से इनकार कर दिया। सती जो अपने पिता के यज्ञ में जाना चाहती थीं तो भगवान शिव ने अपनी पत्नी को यज्ञ में जाने की अनुमति दी। वहाँ प्रजापति दक्ष ने शिव का अपमान किया। अपने पति के प्रति अपने पिता के अपमान को सहन करने में असमर्थ सती ने आत्मदाह कर लिया। शिव के गण वीरभद्र ने अपने क्रोध से मयज्ञ को नष्ट कर दिया और दक्ष का वध कर दिया। भगवान शिव सती को ले गए और दुःख में पूरे आर्यावर्त में घूमते रहे । शिव का क्रोध और दुःख, विनाश के दिव्य नृत्य, तांडव के रूप में प्रकट हुआ। ताण्डव को रोकने के उद्देश्य से भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र का प्रयोग किया, जिससे सती का शव कट गया। सती के शरीर के हिस्से पूरे भारतीय और पड़ोसी देश में विभिन्न स्थानों पर गिरे और इन पवित्र स्थलों को शक्तिपीठ कहा जाने लगा।
*सर्वाबाधा वि निर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः।*
*मनुष्यो मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय॥*