

अनुपमा शर्मा:-
*ॐ देहि सौभाग्यमारोग्यम् देहि मे परमं सुखम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।*:-
शक्तिस्वरूप भगवती देवी को ब्रह्माण्ड में सबसे अधिक ऊर्जा का स्रोत माना जाता है । भारतीय आध्यात्मिक जगत में शक्तिपीठों का बहुत महत्व है। ये शक्तिपीठ सुदूर भारत के उपमहाद्वीपों पर भी फैले हुए हैं। ऐसा ही एक शक्तिपीठ गुह्येश्वरी या गुजरेश्वरी शक्तिपीठ नेपाल में पशुपति नाथ मंदिर से थोड़ी दूर पर बागमती नदी की दूसरी तरफ है । इस देवी शक्तिपीठ की देवी नेपाल की अधिष्ठात्री देवी हैं । इस मंदिर में एक छिद्र है जिसमें से निरंतर जल बहता रहता है। मान्यतानुसार इस जगह पर माता सती के दोनों जानू(घुटने) गिरे थे और कुछ मतानुसार यहाँ मातासती के संधिस्थल (शौच अंग)गिरे थे। इस शक्तिपीठ की शक्ति ‘महामाया’और शिव ‘कपाल’ हैं। यह शक्तिपीठ मन्दिर किरातेश्वर महादेव मन्दिर के समीप पशुपति नाथ मन्दिर से सुदूर पूर्व बागमती नदी के दूसरी ओर एक टीले पर स्थित है । लोक मान्यतानुसार यहाँ कभी श्लेशमांत वन था जहाँ अर्जुन के तपस्या करने पर भगवान किरात रूप में मिले थे । यह वन अब एक गाँव बन गया है।
*या देवीसर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।*
गुह्योश्वरी शक्तिपीठ के नजदीक ही चन्द्र घण्टा योगिनी व सिद्धेश्वर महादेव का मंदिर है जहाँ ब्रह्मा जी ने शिवलिंग की स्थापना की थी। यहाँ शिवशक्ति रूप में विराजमान हैं। यह सिद्ध क्षेत्र है यह साधकों को शक्ति देने वाला क्षेत्र है। शक्ति संगम तंत्र में कहा गया है कि जटेश्वर से प्रारम्भ हो योगेश तक साधकों को सिद्धि देने वाला है यह क्षेत्र। इस पुण्य भूमि सिद्धपीठ में इंद्र और अन्य देवताओं ने भी माता भगवती की आराधना व कठोर तप किया तब भगवती ने प्रकट होकर देवताओं को यह वरदान दिया कि आप सब लोग सतयुग ,त्रेता ,द्वापर व कलियुग में तैंतीस कोटि देवता के नाम से प्रसिद्ध होंगे व समस्त विश्व में आप सबकी सब पूजा करेंगे । यह मन्दिर लगभग २५००(पच्चीस सौ) साल पुराना है । गुह्योश्वरी में दो शब्दों की संधि है गुह्यो+ईश्वरी आज यह शक्तिपीठ मन्दिर यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में से एक है। सत्रहवीं सदी में राजा प्रताप मल्ला ने इस मंदिर का निर्माण किया इसके बाद कांतिपुर के नौवें राजा ने पगोड़ा शैली में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।
*देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य।*
*प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वंं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ।।*
