
अनुपमा:-
जनस्थान (भ्रामरी शक्तिपीठ) नासिक, महाराष्ट्र
सम्पूर्ण भारत और भारत से बाहर 108 माता के ज्योतिर्मय शक्तिपीठ हैं जिनमें से प्रमुख ५१ शक्तिपीठों का यहाँ हम उल्लेख कर रहे हैं। आज नासिक के भ्रामरी शक्तिपीठ के बारे में बारे में आइये कुछ जानकारी साझा करते हैं। नासिक में गोदावरी नदी के नज़दीक स्थित जनस्थान पर माता सती की ठोड़ी गिरी थी । यह जगह नासिक रोड स्टेशन से लगभग ८ (आठ) किलोमीटर दूर पंचवट क्षेत्र में स्तिथ है जिसे भद्रकाली शक्तिपीठ भी कहते हैं। इसकी शक्ति है भ्रामरी और भैरव विकृताक्ष हैं।
‘चिबुके भ्रामरी देवी विकृताक्ष जनस्थले’ तंत्र चूड़ामणि। यही भद्रकाली मन्दिर ही शक्तिपीठ है ,जहाँ माता की चिबुक(ठोड़ी) गिरी थी। यहाँ चिबुक ही शक्तिपीठ रूप में प्रकट हुआ । इस शक्तिपीठ मंदिर का कोई शिखर नहीं है। सिंहासन पर नवदुर्गाओं की मूर्तियां हैं, जिनके बीच में माता भद्रकाली की ऊँची मूर्ति है। मुस्लिम आक्रांताओ के कारण पहले गाँव के बाहर पहाड़ी पर मूर्ति स्थापित कर दो मंजिला मंदिर बनाया परंतु उस पर कलश स्थापित नहीं किया ताकि किसी को ज्ञात ना हो कि यह मंदिर है ।
मंदिर में माँ भद्रकाली की अत्यंत आकर्षक प्रतिमा लगभग ३८सेंटीमीटर ऊँची है और इनकी १८भुजाओं में विविध आयुध हैं
इस स्थान के नासिक नाम के पीछे यहाँ की नौ छोटी-छोटी पहाड़ियाँ हैं, जिनके कारण इसका नाम पड़ा-नव शिव, जो धीमे-धीमे बदल कर ‘नासिक’ हो गया । इन सभी नौ स्थानों पर माँ दुर्गा का स्थान है, यहाँ माता भद्रकाली स्वयंभू मूर्ति है।
मंदिर की ओर से ही यहाँ प्राच्यविद्यापीठ की स्थापना की गयी है, जहाँ पुरातन गुरु परम्पराधारित वेद-वेदांग का अध्ययन होता है। यहाँ रहने वाले छात्र मंदिर के आस-पास स्थित ब्राह्मणों के ३५० घरों से मधुकरी(भिक्षा)लाते हैं और उसका नैवेद्य माँ को अर्पित किया जाता है। त्रिकाल-पूजन की व्यवस्था भी यही छात्र करते हैं। निकट रहने वाले प्रवासी ब्राह्मण परिवारों के घर से क्रमानुसार पूजार्चना, नैवेद्य, देवी पाठ, नंदादीप आदि के लिए सामग्री – संग्रहण किया जाता है। नवरात्र का उत्सव शुक्लपक्ष प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक धूमधाम से मनाया जाता है।
इस नाम से(भ्रामरी) एक शक्तिपीठ पश्चिमी बंगाल के त्रिस्रोता में भी स्थित है।
