
अनुपमा शर्मा:-
“शिव” शब्द नहीं “शिव” भाव है इस सम्पूर्ण सृष्टि का । इसे जान वही पाया है जो विलीन हो गया इस भाव में । ना जाने कितने गहरे अँधेरों को चीरकर उस तक पहुँच बनती है । यह तो इस यात्रा पर चलने वाला साधक जाने और उस साधक का भाव शिव जाने। शिव स्रष्टा भी हैं और द्रष्टा भी हैं उस यात्रा के जो एक साधक तत्व रूप में चाहता है। जीवन के ना जाने कितने विष रूपी विषयों से दूर रखते हैं महादेव अपने अभिलाषी को…।
आध्यात्मिक जगत में शिव सृष्टा हैं ,शून्य हैं लेकिन शून्य से आगे जाने की राह शिवत्व का बोध कराती है। त्र्यम्बकं यूँ ही नही कहा जाता भोलेनाथ को । दो आँखें भौतिकता की होने के साथ-साथ तीसरी आँख मस्तिष्क पर आध्यात्म की तरफ मोड़ती है। बाहरी दुनियाँ को इन दो चक्षुओं से देखा जा सकता है अनुभव किया जा सकता है लेकिन भीतर की दुनियां पर यह भी निष्फल हैं..
तीसरा नेत्र अंतर की तरफ देखता है इसलिए हर साधक अपने जीवन में इसी का अभ्यास करता है। शिव अन्तस् के तमस को दूर कर सभी तरह से शून्य कर देते हैं उस जीवन के लिए जहाँ के लिए किसी अन्य का कोई अस्तित्व नहीं होता । ऊर्जा का बहाव व विकास जितने उच्च स्तर का होगा उतना ही आपका तीसरा नेत्र सुदृढ़ होगा।
मेरे महादेव मेरे मन के समीप हर पल पहरा देते हैं जब भी मन का बहाव उस तरफ हो जाता है उनसे स्वाभाविक मिलन हो जाता है (यहाँ मिलन से मतलब चेतना से है)। अनंत ऊर्जा के स्रोत महादेव ,चिरस्थायी भाव महादेव जिनके साथ यात्रा में आकर्षण भी है और आनंद भी है। इस यात्रा को कौन चाहता है। जो योगी होगा वह शिव की यात्रा में अवश्य होगा, शून्य की यात्रा में अवश्य होगा लेकिन जो भोगी होगा वह भौतिकता की यात्रा में होगा । शिव सूत्रधार हैं हर उस चेतना के जिसका संकेत वह अपने शरीर पर धारण किए हुए अवयवों (अलंकारों) से करते हैं।
1.चंद्रमा
चंद्रमा यानी सोम ,सोम यानी नशा आनंद। जितना आनंद आप बाहर की भौतिकता में ले सकते हैं उतना ही आनंद भीतर की आध्यात्मिक यात्रा में ले सकते हैं। नशा बाहर का हो या भीतर का आनंद ही देता है । शिव आनंद के प्रणेता..
2.सर्प
सर्प संकेत करता है शिव की ऊर्जा शिखर तक पहुँच चुकी है , योगीजन की साधना में कुण्डलिनी जागरण का बड़ा महत्व है। जिस साधक के अंदर बाहर हलचल शुरू हो जाय और निरन्तर यात्रा पर बना रहे तो वह उस पूर्णता को प्राप्त कर सकता है जो शव को शिव बना देती है।
3.त्रिशूल
महादेव का त्रिशूल जीवन के ,योगियों के तीन आयामों को प्रकट करता है। इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना प्राणमय कोष में उपस्थित तीन मूलभूत नाड़ियाँ हैं । इनका कोई बाहरी रूप नहीं होता है ।ऊर्जा अपने तय रास्तों से अविरल बह रही है बस उस शिवत्व को अपनी तय यात्रा में पाना महसूस करना ही शिव है।
4.नंदी
अनंत प्रतीक्षा का प्रतीक नंदी। हमारी संस्कृति में प्रतीक्षा को बहुत बड़ा गुण माना गया है, प्रतीक्षा वही कर सकता है जिसके अंदर धैर्य हो। एक साधक जब साधना करता है तब उसे इस प्रतीक्षा की धैर्य की अत्यधिक आवश्यकता होती है । उतावलेपन से कोई यहाँ टिक नहीं सकता। ध्यान में प्रतीक्षा का विशेष महत्व है। सजग होकर बैठना नंदी से जानिए जो शिव की तरफ शिव होने के लिए प्रतीक्षारत है।
5.ॐ नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय महामन्त्र है उन सिद्ध विद्यार्थी के लिए जो शव से शिव की राह पर हैं। यह पंचाक्षरी मन्त्र सृष्टि में व्याप्त पाँच तत्वों का प्रतीक है। जिन्हें इनकी मदद से जाग्रत कर सकते हैं और शिव महादेव के निकट पहुँच सकते हैं..