सपना चंद्रा:–

महेश के हॉस्पिटल पहुँचते ही सुधा की देखरेख करने वाली नर्स ने उसके हाथों में चिट्ठी पकड़ाते हुए कहा..
“सुधा अपने अंतिम समय में रोहन नाम के व्यक्ति का नाम ले रही थी।वो बहुत कुछ कहना चाहती थी पर ऑक्सीजन लेवल के कम होने से बोलने में असमर्थ थी।”
सुधा की ओर देखते हुए महेश ने कहा…”मैंने कोई कसर नहीं छोड़ी फिर भी तुमने मुझसे अपना हाथ छुड़ा लिया।
ऐसा क्यूं किया तुमने , मैं तुम्हारी देखभाल हर हाल में करता।कम से कम हम साथ तो रहते।”
नर्स महेश को ढाँढस बँधाते हुए धैर्य से काम लेने की बात कहकर आगे बढ़ गई।
महेश चिट्ठी को खोलकर पढ़ने लगा…
प्रिय महेश,
मुझे मालूम है मेरे पास वक्त नहीं है, क्यूंकि शरीर हफ़्ते भर पहले से ही इशारा करता रहता है।एक बात जो जरुरी है, मेरे जाने के बाद तुम ही वो व्यक्ति होगे जिसे फैसला लेने का अधिकार होगा।
मेरी अंतिम इच्छा है कि मेरे शरीर के जो भी अंग हैं वो किसी जरूरतमंद को दान किए जाएं।कम से कम मैं इसी बहाने जिंदा रहुँगी।एक बेहद जरूरी बात है वो ये कि
एक व्यक्ति है रोहन उसकी पत्नी दिल की मरीज है।उसे शायद आईसीयू में शिफ्ट किया गया है।मेरे बगल वाले कमरे में थी।नर्स रोज उसके बारे में बताया करती कि उसके दो छोटे-छोटे बच्चे हैं।उसे कुछ हो गया तो उन बच्चों का क्या होगा।
जानते हो वो कौन है.. शालिनी, तुम्हारी अच्छी वाली दोस्त।नर्स ने जब पहली बार नाम बताया तो जाने क्यूं मुझे बेचैनी सी होने लगी।मैंने उसे मोबाइल से फोटो खींचकर लाने को कहा।जब मैंने फोटो देखा तो पहचान गई।
हमारी रिशेप्शन पार्टी में वो आई थी और मेरी उससे तुमने मुलाक़ात कराई थी।उसके चेहरे से लगा था कि , तुम्हारी दोस्ती से कुछ अलग उसके दिल में है।शायद एक औरत होने के नाते उसकी आंखों में वो पढ़ा था।
उसे हाल ही में यहाँ लाया गया है और मैं चाहती हूँ कि मेरा दिल उसे लगाया जाए। शालिनी के शरीर में ही सही,मेरा दिल धड़कता रहेगा।तुम भले ही अंजान रहे पर वो तुमसे प्यार करती थी।
इस नाते ही सही,कुछ संकोच न करना।अपनी तरफ से उसे हर हाल मदद करना।बच्चों की बहुत चिंता होती है पर क्या करूँ,मेरे वश में कुछ भी नहीं।
हमारे बच्चे थोड़े बड़े हैं उन्हें समझा देना समझ जाएंगे।
तुम्हारी सुधा
महेश नर्स को ढूँढता हुआ हॉस्पिटल के चक्कर लगा ही रहा था कि उसे आईसीयू की वार्ड दिखी।
वह अंदर जाकर पेशेंट को देखना चाहता था पर वार्ड ब्वाय ने उसे रोक दिया।
उसने वह चिट्ठी उसे दिखाई और पेशेंट को शीशे से देखने की अनुमति चाही।
हाँ, वह शालिनी ही थी,एकदम निढाल सा ज़िस्म ,कमजोर होकर बेजान सी दिख रही थी।
महेश की अंतरात्मा कहने लगी,बेजान ही तो है अब इसमें जान तुम ही डाल सकते हो।देर न करो।
हां!.हां!..फ़ौरन सारे काम निबटाता हूँ,जो भी प्रक्रिया है पूरी करता हूँ।मैं सुधा को जिंदा रखूँगा।
डॉक्टरों ने सुधा का दिल शालिनी के शरीर में लगा दिया। होश आने के बाद वह खतरे से बाहर थी।एकबार नजदीक से वह शालिनी को देख लेना चाहता था।
इधर सुधा चिता पर भी सुकून की मुद्रा में दिख रही थी।कहते हैं आत्मा को शांति तबतक नहीं मिलती जबतक उसकी कोई अंतिम इच्छा पूरी न हो जाए।
मैंने तुम्हारी इच्छा पूरी कर दी है सुधा।अच्छा किया तुमने यह निर्णय लेकर,जाने वाले का दुख तो सालता ही है। परंतु यह अंगदान कई लोगों की जिंदगी में खुशियां ला सकता है।
(सपना चन्द्रा
कहलगांव, भागलपुर)