सपना चंद्रा :-
“न जाने कौन से पाप किए थे मैंने जो तू मेरी कोख से पैदा हुआ।”
विमला अपने इकलौते बेटे को कोसती ,बड़बड़ाती हुई लाठी टेकते दरवाजे पर आ बैठी।वह अपनी बहू रत्ना का इंतजार कर रही थी।आज उसके आने में देर जो हो रही थी।
उसे इस तरह परेशान होता देख पड़ोस की दुल्हिन ने पुछा-“अम्मा जी किसे देख रही हो देर से,कोई आने को है क्या..?”
विमला-“हाँ दुल्हिन,रत्ना नाही आई है अभी तक, बेचारी हम-सब का पेट पालने की खातिर स्कूल में पढ़ावे है ,घर आकर टिशन भी पढ़ावे है साथ ही घर का काम भी करे है।का करें हमारे पेंशन से तो घर नाही चल सके है।दिन-समय भी ठीक नहीं,औरत के लिए डेग-डेग में खतरा पसरा है।
“अम्मा!.आपका कैसा रुप है ये,रत्ना घर पर जबतक रहती आपको फूटी आँख न सुहाती और आने में देर हो जाए तो चिंता में बैठी हो।”
“हां! दुल्हिन,हम सास जो हैं।सास ऐसी ही होवे है यही कहेगी न।कम से कम घर से बाहर जितनी देर रहेगी,लोगों को साथ हंसेगी,बोलेगी तो।”
“वाहहह!अम्माजी,सास हो तो ऐसी।”
“मेरे नसीब में ऐही दिन देखना लिखा था।सब दुलार,प्यार का नतीजा है जो नीरज अपनी जिम्मेदारी न समझे है।उस बेचारी के नसीब में गालियाँ ही लिखी है।वह इस निठल्ले से भी सुनती है और मुझसे भी।क्या करूं वो घर के कामों में ही उलझी रहे अगर मैं उसका जीना न हराम कर दूँ।”
तभी रत्ना सामने से आती दिखाई दी। दरवाजे पर बैठी विमला को देख डर ही गई।आज तो दुगुनी गालियां पड़ेगी मुझे।
रत्ना-“अम्माजी वो सामान खरीदने लगी इसलिए देर हो गई।”
विमला-“मैं तुझे पागल लगती हूँ या मुझे दिखाई न पड़े है।मैं न देख रही कि तु हाथ में सामान लिए आ रही है।ला मुझे दे ,तेरे हाथ में दर्द हो रहा होगा।मैं सिर्फ़ गालियां ही नहीं देती प्यार भी करना जानती।”
रत्ना-“नहीं,नहीं अम्माजी!मुझे दर्द नहीं हो रहा।मैं ठीक हूँ।”
विमला-अरे ला!अभी भी इस बुढ़ी हड्डियों में बहुत जान है।दे सामान मुझे।चल,तेरे लिए कुछ बनाकर रखा है मैंने।
रत्ना समझ ही नहीं पा रही थी कि मेरी वही सास है जो आँख खुलते ही गालियों की बौछार कर देती है।
(लेखिका कहलगांव: भागलपुर :बिहार निवासी हैं)