रेखा शाह आरबी:-
(हास्य व्यंग्य)

मनुष्य की रगों में जितना खून नहीं दौड़ रहा  है। उससे ज्यादा सोशल मीडिया दौड़ता है। हर  कोई सोशल मीडिया वीर बना बैठा है। लोगों के रगों में सोशल मीडिया के इंस्ट्राग्राम, व्हाट्सएप, फेसबुक खून में प्रवाहित होता रहता है। थोड़ी देर इससे दूर रहते हैं तो उनकी इम्यूनटी कम होने लगती है। और उनकी सांस फूलने लगती है।जिस तरह किसी भी बैटरी को चार्ज होने के लिए बिजली के सम्पर्क में लाया जाता है। वैसे ही लोग  सोशल मीडिया से खुद को रिचार्ज कर रहे हैं। अब यह मतिभ्रम वाला ही मामला है कि वह रिचार्ज हो रहे है कि डिसचार्ज हो रहे है।
लोगों के लिए 1GB डाटा तो गरीब के घर का आटा हो चुका है। घर में आया नहीं कि खत्म भी हो जाता है। मोबाइल में आया नहीं कि देखते ही देखते  चट कर जाते हैं। ऐसा मुझे पहले लगता नहीं था। लेकिन चतुरी भैया के घर में मचे भीषण बवाल के बाद मुझे यह कहना पड़ रहा है। चतुरी भैया के घर में चार स्मार्टफोन है। लेकिन रिचार्ज इतना महंगा हो चुका है कि महंगाई के जमाने में एक ही मोबाइल किसी तरह रो गाकर रिचार्ज करवा पाते हैं।यह चतुरी भैया की आर्थिक दशा तो पाकिस्तान जैसे ही हैं । घर में भले ही खाने को आटा नहीं है लेकिन उनको रईसी हिंदुस्तान वाली चाहिए। वह कहावत तो आपने सुना होगी ” कर्जा लेकर घी पीना ” वाली। खैर चतुरी भैया को कर्ज  तो नहीं लेना पड़ता। लेकिन रिचार्ज करवाने के चक्कर में बहुत कुछ कंप्रोमाइज जरूर करना पड़ जाता है । फिर भी 1GB डाटा के खुशी में इतना त्याग तो चलता है।

पूरे परिवार को चूंकि अपने-अपने व्हाट्सएप, इंस्टा ,फेसबुक चलाने थे। तो डाटा भी चाहिए और डाटा मिलता था चतुरी भैया के मोबाइल में  ही, सबको हॉटस्पॉट के द्वारा, वह प्रसाद के जैसे बांट देते थे । लेकिन कल रात उनके परिवार के  किसी एक ने रात 12:00 ही पूरा 1GB डाटा  को अपने अकेले का माल समझ कर पी गया।  सुबह-सुबह जब और लोगों ने मोबाइल खोला तो डाटा ही नदारद उसके लिए सभी एक दूसरे पर पिल पड़े । और सभी एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप  करने लगे । लेकिन अब क्या हो सकता था डाटा तो टाटा करके जा चुका था। सभी के चेहरे ऐसे लटक चुके थे लगता था । कितनी भारी चीज चोरी हो चुकी है। हाय रे सोशल मीडिया हाय रे सोशल मीडिया के भक्त।
सबको जानना था कि आखिर 1GB डाटा किसके पेट में गया। इसकी मरोड़ सबको उठ रही थी।बच्चे अलग उत्पाद उत्पन्न कर रहे थे। पत्नी अलग आग बबूला होकर भड़क रही थी। और चतुरी भैया इन सभी को समझने में व्यस्त थे । लेकिन कोई समझने को तैयार नहीं था। दाल- चावल -आटा होता तो पड़ोसी से मांगकर काम चला लेते । लेकिन डाटा के लिए किसके पास जाएं । आज की जमाने में सबसे अच्छा मित्र यदि  किसी को माना जाता है वो जो बुरे वक्त में साथ खड़ा रहता है ।और उससे भी ज्यादा शुभचिंतंक उसको माना जाता है । जो मोबाइल में नेट खत्म हो जाने पर अपने दिल को बड़ा करके  अपना हॉटस्पॉट आपके लिए उपलब्ध करा दे। बहुत बड़ा दिल होता है ऐसे मित्रों का, लेकिन  चतुरी भैया के इतने मधुर संबंध किसी से भी नहीं थे की कोई उनको डाटा उपलब्ध करवा देता। और उनका पड़ोसी तो उनका जन्मजात दुश्मन  हैं । उनके घर में वाई-फाई लगा हुआ है लेकिन क्या मजाल की कभी पासवर्ड दे देते। बच्चे अलग परेशान थे और बच्चों की मां अलग तूफान मचाए हुए थी । सबका मोबाइल फोन कर चेक किया गया तो पता चला चतुरी भैया  ने गलती से एक लंबी चौड़ी फाइल डाउनलोड कर ली थी। और उसी में सारा डाटा टाटा करके चला गया । अब बच्चे दो दिन तक  भैया को ज्ञान देंगे कि क्या मोबाइल में खोलना चाहिए और क्या नहीं खोलना चाहिए जिससे कि डाटा सुरक्षित रहे।

रेखा शाह आरबी
बलिया (यूपी)
[email protected]

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.