
ब्रजेश वर्मा:–
एक भोज, जो 1892 में लंदन में आयोजित किया गया था, उसके विषय में इतिहास में शायद ही कहीं चर्चा होती है।
इस भोज का आयोजन बिहार में भागलपुर के सबसे बड़े मानव परोपकारी रायबहादुर तेज नारायण सिंह (1849-1896) ने ब्रिटेश पार्लियामेंट के हाउस ऑफ कॉमन्स के चुनाव में दादा भाई नौरोजी (1825-1917) की जीत के जश्न में आयोजित किया गया था।
तेज नारायण सिंह द्वारा आयोजित इस भोज में पांच सौ लोग शामिल हुए थे।
मार्च 1891 की एक सर्द भरी सुबह को तेजनारायण सिंह अपने इकलौते पुत्र दीप नारायण सिंह (1875-1935) को लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से लंदन पहुंचे। वहां उनका स्वागत सच्चिदानंद सिन्हा (1871-1950) ने अन्य बिहारी छात्रों के साथ मिलकर किया।
सच्चिदानंद सिन्हा की सलाह पर ही तेज नारायण सिंह ने अपने पुत्र दीप नारायण सिंह का नामांकन सोसायटी ऑफ मिडल टेंपल में कराया, जहां अधिकांश बिहारी छात्र पढ़ा करते थे।
अगले साल ब्रिटेन में पार्लियामेंट का चुनाव हुआ। रंग भेद की नीति के खिलाफ दादा भाई नौरोजी ब्रिटेन की लिबरल पार्टी की टिकट पर हाउस ऑफ कॉमन्स का चुनाव फिंसबरी संसदीय क्षेत्र से लड़े। इस चुनाव में दादा भाई नौरोजी की मदद मुहम्मद अली जिन्ना (1876-1948), जो बाद में दादा भाई के निजी सचिव भी रहे, चितरंजन दास (1870-1925), तेज नारायण सिंह, सच्चिदानंद सिन्हा, दीप नारायण सिंह तथा बड़ोदरा के महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ आदि कर रहे थे।
तमाम नस्ल भेद करने वाले के विरोध के बावजूद दादा भाई नौरोजी ने 1892 का यह चुनाव जीत लिया। वह पहले भारतीय ही नही, बल्कि पहले एशियाई थे जिन्होंने ब्रिटेन की पार्लियामेंट का चुनाव जीता था।
अब जब जश्न मनाने की बारी आई तो उसका बीड़ा भागलपुर के तेज नारायण सिंह ने उठाया। इस जश्न के आयोजन के लिए उनसे उन्हें लंदन में पढ़ रहे बिहारी छात्रों ने आग्रह किया था। उन्होंने को भोज दिया उसमें भारतीय सहित अंग्रेज लोग भी आए। इस भोज में पांच सौ लोग शामिल हुए थे।
आज की पीढ़ी के जेहन में रायबहादुर तेज नारायण सिंह की भूमिका शायद ही याद हो, किंतु इस बात को हर कोई जानता है कि उन्होंने ही भागलपुर में उच्च शिक्षा के लिए 1887 में एक कॉलेज की स्थापना की थी, जो तेज नारायण जुबली कॉलेज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस कॉलेज की स्थापना महारानी विक्टोरिया के जुबली वर्ष पर की गई थी। इस कॉलेज को उनके पुत्र दीप नारायण सिंह ने आगे बढ़ाया।
तेज नारायण सिंह आर्य समाज के पक्के समर्थक थे। जब आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती (1824-1883) ने 1872 में भागलपुर की यात्रा की तो तेज नारायण सिंह ने उनका स्वागत किया था। कलकत्ता स्थित जायसवाल समाज की एक पत्रिका के अनुसार 1885 में आर्य समाज की एक बैठक आदि ब्रह्मसमाज मंदिर, चितरपुर में हुई थी। इस बैठक की अध्यक्षता ईश्वर चंद्र विद्यासागर (1820-1891) ने की थी। इसी बैठक में तेज नारायण सिंह को कलकत्ता आर्य समाज का प्रधान चुना गया था। तेज नारायण सिंह जायसवाल समाज से आते थे।
इतना ही नहीं, तेज नारायण सिंह को 1887 में रायबहादुर की उपाधि मिली और उसी साल ब्रिटिश सरकार की तरफ से पेरिस में होने वाली एक प्रदर्शनी में उन्हें रॉयल कमिटी ऑफ इंग्लैंड नियुक्त करके पेरिस भेजा गया था।
तेज नारायण सिंह की बहुत लंबी आयु नही रही। उनकी मृत्यु 1896 में लंदन में ही हो गई। उसी साल उनके पुत्र दीप नारायण सिंह ने बैरिस्टरी की परीक्षा पास की और भारत वापस लौटकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।