
ब्रजेश वर्मा:-
आधुनिक भारत के इतिहास में शायद ही कोई ऐसा मुस्लिम परिवार होगा, जिनमें से दो भाइयों में से बड़े भाई अली इमाम ने प्रथम विश्वयुद्ध के बाद लीग ऑफ नेशंस में ब्रिटिश भारत का प्रतिनिधित्व किया और उनके छोटे भाई हसन इमाम ने 1918 के बंबई स्पेशल इंडियन नेशनल कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की। ये दोनों भाई बिहारी थे।
सर अली इमाम (1869-1932) का जीवन घटनाओं और विचारों से भरा हुआ है। उनका जन्म पटना जिले के नेउरा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम शम्स उल उलेमा नवाब सैयद इमदाद इमाम था।
अली इमाम ने 1887 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। थोड़े समय के लिए पटना कॉलेज में पढ़ने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए। 1890 में उन्होंने वकालत के लिए लंदन में सोसाइटी ऑफ मिडल टेंपल में अपना नाम लिखाया।
भारत लौटने के बाद अली इमाम ने कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत शुरू की और 1909 में वे कलकत्ता हाई कोर्ट में स्टेंडिंग काउंसिल टू द गवर्नमेंट ऑफ इंडिया नियुक्त किए गए। फिर अली इमाम 1910 में लॉ मेंबर ऑफ गवर्नमेंट ऑफ इंडिया नियुक्त किए गए।
राजनीति में अली इमाम को 1908 में बिहार प्रांतीय कांग्रेस के पहले अधिवेशन का अध्यक्ष बनने का अवसर मिला और फिर उसी साल उन्होंने अमृतसर में मुस्लिम लीग के अधिवेशन की भी अध्यक्षता की। वह हैदराबाद के निजाम की सेवा में भी रहे और प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जिनेवा में हुए लीग ऑफ नेशंस के अधिवेशन में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया।
अली इमाम के छोटे भाई हसन इमाम (1871-1933), का जीवन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक खास महत्व रखता है। उन्होंने अपने खुले विचारों से बिहार को बंगाल से अलग प्रांत बनाने संबंधी आंदोलन का समर्थन किया।
हसन इमाम ने 1898 में मैट्रिक की परीक्षा पास की और कानून की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए। वापस आकर उन्होंने कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत शुरू की। उन्होंने 1908 के मद्रास कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार हिस्सा लिया और फिर वे स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए। अली इमाम में 1911 के कलकत्ता और 1912 के पटना कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में हिस्सा लिया।
आगे चलकर हसन इमाम ने पटना उच्च न्यायालय में जज भी बने। राजनीति में उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 1918 के बंबई में हुए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के स्पेशल अधिवेशन की अध्यक्षता करनी थी।
