अनुपमा शर्मा:–
भारत के अन्य क्षेत्रों की तरह मिथिला भी देवी मंदिरों या ऊर्जा के स्रोतों से भरा पड़ा है। उनमें से कई स्थानों को दरभंगा में देखा जा सकता है । हालाँकि उनमें से कई स्थान या मंदिर नए हैं। मिथिला के प्राचीन देवी मंदिरों में उच्चैठ भगवती मंदिर और अहिल्या स्थान शामिल हैं, इन दोनों का उल्लेख हमारे भारतीय शास्त्रों में किया गया है ।
सन् 2022 में मिथिला की प्राचीन राजधानी जनकपुर जाते समय हमने इन दोनों मंदिरों के दर्शन किए।
*उच्चैठ भगवती मंदिर*
यह मंदिर उच्चैठ गाँव में होने के कारण इस देवी स्थान का नाम उच्चैठ भगवती पड़ा है जिसे उच्चैठ भी कहा जाता है। यह हिमालय जाने वाले उस मार्ग पर स्थित है जिसे कई ऋषि मुनियों ने हिमालय जाने के लिए अपनाया था। , यह हिमालय की तलहटी में है और जनकपुर के बहुत करीब है ।
इस मंदिर के बारे में यह कहा जाता है कि कहती है कि श्री राम भी जनकपुर जाते समय इस मंदिर में आये थे। दरअसल, जिस देवी अहिल्या जो गौतम ऋषि की पत्नी थी के बारे में हमने सुना या पढ़ा है उसी से इस स्थान की कहानी जुड़ी है ,
*कालिदास*
कालिदास एक अज्ञानी और मूर्ख व्यक्ति थे। छल से उनका विवाह एक अत्यंत विद्वान राजकुमारी विद्योत्तमा से कर दिया गया। जब विद्योत्तमा को कालिदास के बारे में यह पता चला कि यह मूर्ख है तो उसने उसे महल से बाहर निकाल दिया और कहा कि अब तभी वापस आना जब तुम्हारे पास पर्याप्त ज्ञान हो या तुम योग्य हो जाओ। ऐसा कहा जाता है कि कालिदास ने उच्चैठ के पास एक संस्कृत पाठशाला में पढ़ना शुरू किया।
माँ दुर्गा के भक्त होने के कारण वह प्रतिदिन मंदिर में जाते और दीपक जलाते थे। एक दिन तूफ़ानी रात में, उन्होंने दीपक जलाने के लिए बड़ी कठिनाई से नदी पार की। देवी माँ उनकी इस भक्ति से प्रसन्न हुईं और उनके सामने प्रकट हो गईं और उनसे वरदान माँगने को कहा। कालिदास ने ज्ञान माँगा और माँ भगवती ने उन्हें यह ज्ञान उपहार में दिया और वह दुनियाँ के सबसे महान कवि बन गये।
और फिर उन्होंने मेघदूतम, अभिज्ञान-शाकुन्तलम, कुमारसम्भव,रघुवंश जैसे महान काव्य लिखे।
*छिन्मस्ता*
यहाँ आप एक बड़ा मछली द्वार देखेंगे जो मंदिर की पुष्टि करता है, इस द्वार में दो विशाल सुनहरी मछलियाँ हैं। मंदिर तक जाने वाला रास्ता पूजा सामग्री और प्रसाद बेचने वाली दुकानों से भरा हुआ है। मन्दिर परिसर के अंदर व चारों ओर लाल रंग के फूल, नारियल, चुनरी बेचने वाले विक्रेताओं की दुकान हैं।
यह एक प्राचीन मंदिर है जो छिन्नमस्ता के रूप में माँ भगवती को समर्पित है – जिसका सिर कटा हुआ है। यह दश महाविद्याओं में से एक हैं । गर्भगृह में आपको काले पत्थर में देवी की एक छवि दिखाई देती है। इसे देखना आसान नहीं है क्योंकि यह लाल गुड़हल के फूलों से ढकी रहती है।
यहाँ आपको बहुत-सी स्त्रियाँ देवी की पूजा करती हुई मिल जाएंगी यह दैवीय ऊर्जा से स्पंदित एक जीवंत मंदिर है। इसी परिसर में एक शिव मंदिर भी है।
जब आप इस मन्दिर की महत्ता और लोकप्रियता के बारे में सोचेंगे तो यह मंदिर बहुत छोटा व अस्त-व्यस्त है।। इसकी टाइल्स उखड़ रही थीं, चारों तरफ गंदगी थी। मंदिर साफ़-सुथरा होता तो भव्य लगता । अव्यवस्था और अस्वच्छता इस स्थान की पवित्रता को लुप्त कर रही थी।
इस मंदिर और आसपास के श्मशान घाट पर बहुत सारी तंत्र साधना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में जो भी व्यक्ति जो कामना करता है वह पूर्ण हो जाती है।
इस मंदिर परिसर में नवरात्रि में काफी भीड़ रहती है। नवरात्रि के नवम दिन जो सिद्धिदात्री देवी का दिन माना जाता है उस दिन पूजा करने से सभी संभव -असम्भव इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं । यहाँ इस दिन विशेष रूप से पूजा की जाती है।
*अहिल्या स्थान*
अहिल्या गौतम ऋषि की पत्नी हैं। वे यहाँ हिमालय की तलहटी के जंगल में रहते थे। एक बार इंद्र ने अहिल्या के साथ छल से संभोग किया जिससे गौतम ऋषि क्रोधित हो गए और उन्होंने अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया ।
जैसे ही उन्होंने श्राप दिया तो उन्हें एहसास हुआ कि यह गलती अहिल्या की नहीं थी बल्कि इंद्र की गलती थी और श्राप को वापस नहीं लिया जा सकता था इसलिए उन्होंने इसे यह कहकर शांत सरल कर दिया कि जब भगवान विष्णु राम के रूप में अवतार लेंगे और उसे अपने पैरों से तुम्हें छूएंगे, तो तुम फिर से अपने मानव रूप में वापस आ जाओगी।
भगवान विष्णु के सातवें अवतार के रूप में भगवान श्रीराम अपने गुरु विश्वामित्र के साथ इसी पथ का अनुसरण करते हुए आये तो रास्ते में उन्होंने अहिल्या का स्पर्श किया और उन्हें आशीर्वाद दिया और तबसे यह स्थान अहिल्या स्थान के नाम से जाना जाने लगा।
*अहिल्या स्थान पर राम मंदिर*
यहाँ राम-जानकी को समर्पित एक मंदिर है जो हल्के गुलाबी और पीले रंग का से बना है । आप अहियारी गांव के इस मंदिर में पहुँचेंगे तो आपको यहाँ राम जानकी के दर्शन होंगे।
यह मंदिर 17 वीं ईस्वी के उत्तरार्ध का बना है और इसका जीर्णोद्धार दरभंगा के राजाओं द्वारा किया गया था।
इसके मंदिर में राम-जानकी के साथ गौतम-अहिल्या हनुमान जी और ऋषि विश्वामित्र की सुंदर मूर्तियाँ हैं ।
इस मंदिर के चारों ओर आप परिक्रमा कर सकते हैं और इसकी सरल सुंदर वास्तुकला का आनंद ले सकते हैं।
अहिल्या मंदिर एक छोटा सा मंदिर है जो एक चौकोर बावड़ी के बगल में बना हुआ है। जमीन पर दो पिंडियां हैं जो पीतल के मुखों से ढकी हुई और वस्त्रों से सुसज्जित हैं।
*जमीन पर पिंडियां – अहिल्या स्थान*
एक मंच पर राम दरबार और हनुमान जी की माँ की गोद में चित्रित मूर्तियाँ हैं।
हनुमान मूर्ति के बारे में जब पूछा तो वहाँ की महिला पुजारी ने कहा यहाँ हनुमान जी का ननिहाल है। जब पूछा तो उसने बताया कि हनुमान जी की माता अंजनी अहिल्या और गौतम ऋषि की पुत्री थीं । और यह बात शास्त्र सम्मत थी । आसपास के कई मंदिरों में हनुमान जी के साथ उनकी माँ अंजनी भी दिखीं ।
*त्वचा उपचार अनुष्ठान*
यहाँ त्वचा उपचार अनुष्ठान होता है । यह कुछ आश्चर्य जैसा है जिसको समस्या होती है वह छड़ी पर दो लंबे बैंगन थाम कर मंदिर की परिक्रमा करे तो उसे इस रोग से मुक्ति मिलती है। यह बिल्कुल सत्य है जो कोई इस तरह देवी अहिल्या से प्रार्थना करता है तो इस तरह के रोग से छुटकारा पा जाता है और जो इस तरह मनौती रखता है और अगर वह ठीक हो गया तो उसे मनौती पूर्ण करने अहिल्या स्थान आना पड़ता है और देवी को बैंगन चढ़ाना पड़ता है ।
इस मंदिर के सामने पीले रंग का एक मोटा स्तंभ है जिस पर मंत्र लिखे हुए हैं। मंदिर के सामने एक जगह में श्री राम और लक्ष्मण की प्राचीन मूर्तियाँ हैं। ऐसा माना जाता है कि इस स्तंभ की परिक्रमा विश्व की परिक्रमा के बराबर है। यहाँ कुछ लोगों को इसकी परिक्रमा करते देख सकते हैं ।
फूस की छत वाली निकट ही यज्ञशाला है जहाँ नियमित यज्ञ होते हैं।
श्री राम के पदचिन्हों वाला एक स्थान उनके इस जंगल में आने की यात्रा का प्रतीक है। भक्तों के लिए यह मंदिरका सबसे पवित्र हिस्सा है।
*यात्रा के लिए निकटवर्ती सुविधाएँ*
*इन दोनों जगहों पर जाने के लिए निकटतम हवाई अड्डा दरभंगा और रेलवे स्टेशन मधुबनी है।
*उच्चैठ बेनीपट्टी से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
*पूजा के दिनों को छोड़कर सामान्य दिनों में मंदिर जाने के लिए 30 मिनट पर्याप्त हैं।
*अहिल्या स्थान दरभंगा से लगभग 24 किमी दूर है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए मुख्य सड़क से लगे साइन बोर्ड का पालन करें।
*गौतम कुण्ड बहुत दूर है और पुराना कुण्ड अब नहीं दिखता या मिलता इसलिए इस कुण्ड की यात्रा को टाला जा सकता है।
*अहिल्या स्थान पर कोई सुविधाएं नहीं हैं, इसलिए अपना भोजन और पानी स्वयं ले जाएं।
*उच्चैठ में कई भोजनालय हैं, लेकिन अपना भोजन ले जाना श्रेष्ठ है।