कंचन:-
हम ब्रह्मांड से बने हैं। हम श्रृष्टि के सूक्ष्म कण हैं। ब्रह्मांड के सामने हमारी अपनी कोई हस्ती नही है।
हम जो भी कर रहे हैं, जो कर चुके और आगे जो भी करेंगे वह सभी ब्रह्मांड ही तय करता है। इसलिए खुद को विशेष समझना ठीक नहीं। हम तो श्रृष्टि के हाथ का सिर्फ खिलौना हैं। हम तो साधन मात्र हैं, साध्य कोई और है। इसलिए आराम से जीवन गुजार लें यही काफी है।
यह सोचना कि ये हम कर रहे हैं, कोई दूसरा कर ही भी नही सकता, वो ऐसा है, वो वैसा है, यह क्यों हो रहा है, वो ऐसे क्यों बोला, कितनी गर्मी है, कैसा मौसम है आदि बातों को बोलना व्यर्थ है। जब हम उसे बदल ही नही सकते फिर झकने से क्या फायदा। जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार करे। बदलने का न सोचें।
हा, अगर कुछ बदलना चाहते हैं तो खुद को ही बदलें। इसी में शांति है । अन्यथा हमेशा परेशान होते रहेंगे।