रेखा शाह आरबी:-
इस दुनिया में हर अवसर किसी के लिए आपदा होती है। तो हर आपदा इस दुनिया में किसी के लिए एक बेहतरीन अवसर होता है । अब यह आपकी नजर के ऊपर है कि आपने उसे अवसर के रूप में देखा या आपदा के रूप में देखा ।
आप सब ने भी करोना में देखा होगा। कुछ लोग ऊपर जाने से बचने के प्रयास में अपना सब कुछ लुटा दिए। तो कुछ उन्हें बचाने के प्रयास में उन्हें लूट कर बहुत ऊपर पहुंच गए। अर्थात आप अर्थ का अनर्थ मत समझिए। कुछ लोग जान बचाने के लिए महंगी दवाई ,महंगे महंगे खाद्यान्न , राशन पानी खरीद कर खा रहे थे । तो कुछ उन्हें महंगे दामों पर बेचकर मालामाल भी हो रहे थे इसे कहते हैं आपदा में अवसर पा जाना। और अपने देश में ऐसे अवसर पारखियों की कोई कमी नहीं है। आप आपदा में पड़कर तो देखिए।  वह लोग अवसर तुरंत तलाश लेंगे। अपने देश में तो लाश में भी अवसर की तलाश कर लिया जाता है। पारखी आपको ऐसे तलाश कर लेंगे जैसे मक्खियां सड़ी हुई लाश को तलाश कर लेती हैं।
फिर से अपने देश में चुनाव आया है तो आप इसे अवसर मान सकते हैं कुछ लोगों के लिए पर चतुर जी के  नजरिए से इसमें  आपदा भी है । और इसमें बहुत बड़े-बड़े अवसर भी छुपे हैं। अब यह आपकी बुद्धि के ऊपर है कि आप इसे अवसर के रूप में बनाते हैं या आपदा के रूप में सर को कूटवाते हैं।
अब चुनाव लड़ने के लिए तो बहुत लोग खड़े होंगे लेकिन उनमें से सभी थोड़े ना जीत जाएंगे। एक जीतेगा बाकी हार जाएंगे ।और जो जीतेगा उसके लिए अवसर होगा । और जो हार जाएगा उसके लिए तो यह आपदा से कुछ कम नहीं होगा। जो हार जाएगा उसके दिल पर तो  फफोले पड़ेंगे ही और उनको उस फफोले के लिए मरहम भी चाहिए। कुछ लोग तो जुगाड़ पानी लगाकर अपने फफोले पड़ने  नहीं देंगे । लेकिन बाकियों के ऊपर पड़ी विपत्ति का क्या उन्हें तो दवा चाहिए।
तो उनके लिए चतुर जी ने एक  मरहम बनाया है। जिससे उनके छालों को आराम मिले। यकीन मानिए दो-तीन महीने इस बिजनेस के चलने के खूब आसार हैं। बिजनेस  डूबने की तो कोई संभावना ही नहीं है। और चतुर जी अपने प्रोडक्ट के प्रचार में जोर-शोर से लगे हुए हैं। मार्केटिंग इतनी जबरदस्त की है कि उनके प्रोडक्ट की शॉर्टेज होने की संभावना बहुत ज्यादा है। इसीलिए पहले से ही चार गुना दाम रख लिए हैं।
और आजकल बिजनेस का यही वसूल भी है कि प्रोडक्ट चाहे जैसा हो लेकिन मार्केटिंग अगर सही ढंग से की जाए तो घटिया से घटिया प्रोडक्ट भी मार्केट में जबरदस्त परफॉर्मेंस दिखाता है। और बिजनेस करके देता है। आपने बॉलीवुड वालों को देखा ही होगा अपनी घटिया से घटिया फिल्म से भी अपने मार्केटिंग के बदौलत अच्छे खासे पैसे कमा लेते हैं। और उससे भी बड़ा ट्रेंड यह है कि जो विवादित विषय होता है उसमें ही अवसर  तलाश करते हैं। यानी कि हर कोई आपदा में अवसर  तलाश करता है । हर कोई इस दुनिया में समझदार है।  बस किसी का चल जाता है और किसी का नहीं चल पाता है।
तो आप भी अपने शहर  जहां पर भी निवास करते हैं। वहां के आपदा पर नजर  डालिए और उसी में अवसर  तलाश कर लीजिए । दूर जाने की भी कोई ज्यादा जरूरत नहीं है ।सबसे अच्छा बिजनेस वहीं से मिलेगा यह सरकारी नौकरी और बड़े-बड़े शहरों में जाकर बिजनेस तलाशना बंद कीजिए। यह बड़े-बड़े शहर यह बड़े-बड़े बिल्डिंग  यह बड़े-बड़े लोग सिर्फ मोह माया है। असली माया तो आपके आसपास ही है। बस आप अवसर पहचानना सीख लीजिए ।और आपदा में अवसर पहचाना सीखिए। आप भी किसी के लिए आपदा है और आप भी किसी के लिए अवसर हैं। कोई आपका इस्तेमाल करें उससे पहले आप इस दुनिया का इस्तेमाल कर लीजिए । इस तरह हर लगे ना फिटकरी रंग भी चोखा आएगा। और जिनको लगता है कि उनका  इस्तेमाल नहीं किया जाएगा तो वह सबसे बड़ा धोखा खाएगा।

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.