रेखा शाह आरबी:-
चाटुकारिता , खुशामद या चमचागिरी कोई बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन नहीं है। लेकिन फिर भी आजकल इसकी डिमांड बढ़ती जा रही है।हर कोई इसे पसंद करता है और सबको इसकी कभी न कभी जरूरत पड़ती है । चरित्र स्तर भले ही गिरता जा रहा है। लेकिन डिमांड आसमान छू रही है ।वैसे भी चमचागिरी आज से नहीं बहुत पहले से अपने देश में फेवरेट वस्तु रही है। जब अंग्रेज अपने देश में थे तो वह हिंदुस्तानियों की इस कमजोरी को अच्छी तरह से पहचान लिए थे । और अपनी धाक सत्ता कायम रखने के लिए और लोगों को अपने तरफ करने के लिए किसी को राय बहादुर तो किसी को खान बहादुर जैसी उपाधि दे देते थे। वह व्यक्ति अंग्रेजों की चाटुकारिता करता करने में व्यस्त हो जाता और अंग्रेज अपना क्षेत्रफल बढ़ाने में व्यस्त हो जाते । अंग्रेजों की कामयाबी का यही राज था।
नौरंगीलाल को नौकरी की बहुत जरूरत थी अगर सच में उन्हें जरूरत नहीं होती तो वह अपने मित्र जो एक न्यूज़ चैनल में रिपोर्टर का काम करता था। उसके न्यूज़ चैनल में काम करने के लिए कतई तैयार नहीं होते । क्योंकि उन्हें चैनल्स पर भरोसा नहीं था ।आखिर जमीर भी कोई चीज होती है । लेकिन ‘भूखे पेट ना होता भजन गोपाला’ और जब पेट में भूख लगती है तो जमीर आखिरकार जमीन पर लोटने लगता है। नौरंगीलाल भी अपने मित्र के कहे अनुसार आखिरकार एक दिन न्यूज़ चैनल के कार्यालय पहुंच ही गए। जिस व्यक्ति मदन को उनका इंटरव्यू लेना था। देखने से ही पता चल रहा था कि बहुत मंझा हुआ खिलाड़ी था। उस व्यक्ति ने नौरंगीलाल को हाल ही में शहर में गर्मी से वक्त पर उपचार न मिलने से हुई मौत के लिए एक न्यूज़ लिखने के लिए कहा आंकड़े और जानकारियां आदि नौरंगीलाल को उपलब्ध करा दिए गए।
नौरंगीलाल ने भी बहुत ही ईमानदारी और निष्ठा पूर्वक एक-एक सच्चाई खबर में आंकड़ों के साथ लिख दिया। नौरंगीलाल को पूरा विश्वास था की न्यूज़ चलने के बाद अस्पतालों के ऊपर कार्रवाई होगी ही होगी। वह न्यूज़ तैयार करने के बाद मदन को दिखाने ले गए। उसने कहा इसे फिर से लिखकर लाओ थोड़ा प्रेक्टिकल होकर । नौरंगीलाल का दिमाग घूम गया सारे आंकड़े भाषा यथासंभव सही ही है। फिर कहां गलती हो गई। लेकिन फिर भी अपनी तरफ से कुछ सही करके मदन के टेबल पर रिपोर्ट रख दिया। रिपोर्ट पढ़ने के बाद मदन ने पीयून को बुला कर कहा– “इस व्यक्ति को सीधे धक्के मार कर बिल्डिंग से बाहर करो लगता है अन्य न्यूज़ चैनलों से सेटिंग करके आया है मेरा न्यूज़ चैनल बंद करवाने के लिए”। नौरंगी लाल के समझ में तो कुछ नहीं आया । जैसे उन्हें जीवन भर चाटुकारिता करना नहीं आया। नौरंगीलाल को थोड़ी सी चाटुकारिता भी सीख लेनी चाहिए थी तो भूखे पेट भजन नहीं करना पड़ता ।