रेखा शाह आरबी:-
बिहार का लिट्टी चोखा देश में बड़ा ही फेमस था। लोग जीभ चटपटाते हुए खूब मजे लेकर  लिट्टी चोखा खाते है। लिट्टी चोखा में स्वाद है रस है आनंद है जो उसे लोगों का प्रेम दिलाए है । अब बिहार का पुल भी देश में उतना ही फेमस हो गया है। पूलों में भी पैसा है अथाह कमाई है रोजी है रोजगार है इसीलिए पुल बनने से लेकर गिरने तक सब कुछ से प्रेम है। आप विश्वास नहीं करेंगे पुल बनने से लेकर गिरने तक की प्रक्रिया में हर क्रिया प्रतिक्रिया में लोग प्रसन्न होते हैं। बस पुल का होना जरूरी है।
जिसको भी सीखना है कि  कैसे धड़ाधड़ बिना बारूद का इस्तेमाल किये  पुलो को गिराया जा सकता हैं । वह यहा आकर  सीख सकता है। ऐसा अद्भुत ज्ञान ना देश में ना विदेश में कहीं नहीं मिल सकता है। सिर्फ आपको यही मिल सकता है। यह रिसर्च का विषय हो सकता है कि आखिर कौन सा पदार्थ इस्तेमाल किया गया जिसके कारण पुलों का जब मन किया तब वह सुसाइड करने मूड बनाने लगते है । लानत भेजने को मन करता है अंग्रेजों के ऊपर जाने कैसा पुल बना कर गए की हजारों टन का वजन उठाकर भी चूं तक नहीं करते हैं। और बेशर्म के जैसे खड़े रहते हैं। अंग्रेज चले गए लेकिन उनकी बेशर्मी की निशानियां अभी तक है। और एक हमारे देश के महान इंजीनियर है उनकी महानता को प्रणाम करने को मन करता है।
कौन कहता है कि गरीबी में इंसान फेमस नहीं हो सकता है बस दिल से कोशिश होनी चाहिए।  बिल्कुल हो सकता है उदाहरण के लिए बिहार के पुलों को देख लीजिए । कुछ ही दिनो में दशियों  पुलों ने सुसाइड कर  रिकॉर्ड बना दिया है। और अब बच्चे बच्चे की जुबान पर हैं । अब दुनिया भर के पुल के इंजीनियर, चिंतक और बनाने वालों का ध्यान खींच लिए हैं। कि आखिर यह कौन सी कला और तकनीक है जो हफ्ते में चार पुल गिर सकते हैं ।
दुनिया की हर इमारत और पुल बनाए ही इसीलिए जाते हैं कि एक न एक दिन वह टूटेंगे । लेकिन कोई समय से टूटेगा और कोई असमय से इस दुनिया से उठ जाएगा । लेकिन  असमय से टूटने वाले पुलों के हम लोग ॠणी रहेंगे । क्योंकि जिंदा हाथी लाख का होता है तो मरा हुआ हाथी सवा लाख का होता है । जरा सोच के देखिए जिस पुल ने समय से पहले अपना आत्मदान किया है। वह कितना बड़ा दानी था।  खुद कुपोषित रहा कुपोषण का शिकार रहा । लेकिन ठेकेदार ,इंजीनियर ,नेता सबको हृष्ट-पुष्ट   बना कर गया। और अब उसकी मरी हुई डेड बॉडी की जांच पड़ताल के लिए लगे भारी भरकम निकम्मी सरकारी मशीनरी को भी अतिरिक्त रोजगार के अवसर उपलब्ध करा दिया। उनके भी दाल रोटी का इंतजाम कर दिया। उनको भी कमाने का भरपूर अवसर दे दिया। और वह पुल बनाने वालों से ज्यादा कमाएंगे ।इसीलिए कहा जाता है कि मरा हुआ हाथी सवा लाख  वाला का होता है।
इन निकम्मे सरकारी कर्मचारियों को अगर सेवा से बर्खास्त कर दीजिए । तो जिस पुल को बनाने का यह दम भरते हैं ।उसी पुल को बनाने वाले मजदूर के साथ रेत, सरिया ,सीमेंट ढोने के लायक भी नहीं होंगे। क्योंकि उनसे मजबूत और टिकाऊ तो बिना डिग्री वाले मिस्त्री मकान और घर बनाते हैं । और उनके बनिस्पत बहुत ही कम पैसों में बना कर देते हैं जो सालों साल चलते रहते हैं ।लेकिन कहा जाता है ना कुछ लोग ऊपर से सोने के कलम से किस्मत लिखवा कर आते हैं। और आजकल सोने से किस्मत लिखवाना मतलब सरकारी नौकरी पाना है । एक बार इस कलम से किस्मत येन-केन-प्रकारेण  कोई भी जुगाड़ लगाकर लिखवा लिए तो फिर धरती पर आपके लिए स्वर्ग ही स्वर्ग है।

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.