रेखा शाह आरबी:-
भगवान जाने बरसात आते ही सबका दिमाग ठंडा होता है तो हरी सब्जियों और टमाटर में जाने कैसे आग लग जाती है । और सबसे ज्यादा टमाटर अपनी लाल -लाल आंख दिखाने लगता है। जाने किस पर इतना बिगड़ता है और किस पर गुस्सा करता है। कब टमाटर के दुख से कब आजादी मिलेगी। आम जनता तो पहले ही हर चीज के आगे हाथ जोड़कर खड़ी है। पहले 100- पर पहुंच गया । घर का बजट बिगाड़ने में अपनी पूर्ववत सालाना भूमिका निभा रहा है । और शाही पनीर टमाटर से अलग होकर अलग ही मातम मना रहा है । टमाटर ने सब्जी बाजार मिडिल क्लास घरों की तरफ आने वाले रास्ते को भूल गया है। सिर्फ हाई सोसाइटी कॉलोनी ही सिर्फ टमाटर को पसंद आ रहा है । झोपड़पट्टी के तरफ तो पीठ करके खड़ा है। ऐसा नहीं है टमाटर अकेला भाव खा रहा है। उसके साथ अदरक भी भाव उतना ही बल्कि उससे डबल खा रहा है । लेकिन उसका कोई चर्चा नामोनिशान कहीं पर भी नहीं है। और टमाटर की चर्चा रुक नहीं रही है। ऐसा भी नहीं है कि बिना टमाटर के जिंदा नहीं रहा जा सकता है। लेकिन फिर भी आज टमाटर की हैसियत पक्ष के रूतबा जैसे है।
एक व्यक्ति ने पत्नी से बिना पूछे सब्जी में टमाटर का इस्तेमाल कर लिए तूफान ही खड़ा हो गया है। और तूफान भी कोई छोटा मोटा नहीं इतना बड़ा की पत्नी बेटी को लेकर घर ही छोड़ गई। और यह मामला पुलिस तक पहुंच गया । उस व्यक्ति का कसूर सिर्फ इतना था कि वह एक छोटा सा ढाबा चलाता था । इसके अलावा टिफिन का भी काम करता था । उस व्यक्ति ने टिफिन में देने के लिए घर में पक रही सब्जी में उसने पत्नी से बिना पूछे दो टमाटर का इस्तेमाल कर लिया । पत्नी तो महा चंडी का रूप धारण कर ली। और बात बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ गई की पत्नी घर छोड़कर चली गई। दौड़ता भागता पति पुलिस के शरण में पहुंचा । तो पता चला कि दरोगा खुद चार दिन से थाने की कैंटीन में खाकर अपना गुजारा कर रहा है । क्योंकि उसे घर पर टमाटर नहीं ले जा पाने की वजह से घर निकाला मिला हुआ है। बात दरअसल यह था कि दरोगा नया-नया भर्ती हुआ था। अभी उसने अपने पद की महिमा को पहचाना नहीं था। तभी बेचारा यह सब झेल रहा था। घरों में रोज टमाटर कभी अपने लगातार बढ़ते भाव से तो कभी किचन में बढ़ रहे टमाटर के अभाव से वाद-विवाद करवा रहा हैं।
खैर मुझे तो ऐसा लग रहा है हो सकता हो घर में दो ही टमाटर हो और पति ने इस्तेमाल कर लिया। जिसकी वजह से उसकी पत्नी का मिजाज बिगड़ गया हो । उसको टमाटर पोहे में डालने हो जो उसका फेवरेट मन पसंदीदा भोजन हो । और पोहे में सेव और टमाटर न पड़े तो भला क्या स्वाद आता है यह हो सकता है पत्नी थोड़ा ज्यादा ही स्वाद लेने की इच्छुक हो। और पति ने टमाटर ही गायब कर दिए तो बिगड़ना उसका जायज था। आखिर इस स्वार्थ की दुनिया में अब पति पत्नी के रिश्ते टमाटर, आलू, प्याज पर आकर तो टिकने है।
लेकिन टमाटर को भी कुछ ज्यादा भाव खाने की जरूरत नहीं है। क्योंकि यह नाम यह रुतबा यह शोहरत मात्र कुछ दिनों की है। फिर उसका भाव भाजी का भाव ही होना है। लेकिन कहा जाता है जिसे नया नया नाम मिला हो और रुतबा पहचान मिला हो वह तो भाव खाता है और टमाटर भी भाव खा रहा है। लेकिन टमाटर को मेरी यही सलाह है कि औकात में रहे ऐसा ना हो कि उसका वैज्ञानिक कोई सगा संबंधी या डुप्लीकेट पैदा कर ले। फिर उसको पूछने वाला इस धरती पर कोई नहीं मिलेगा।
