रेखा शाह आरबी:-

सभी लोगों को लगता है कि चौक चौराहों पर खड़े पुलिस वाले छोटे सवारी वाहनो और दुपहिया वाहन चालको के घोर दुश्मन होते हैं। जब रहता है तब उनकी पीठ पर अपना डंडा बजा देते हैं । और उन्हें प्रताड़ित करते रहते हैं ।यह सही नहीं है कि आप किसी के बारे में इसी तरह कोई राय बनाए।पहले किसी बात को समझिए उसके अन्य पहलु पर भी विचार कीजिए उसके बाद ही कोई राय बनाना सही रहता है हो सकता है । आप जो सोच रहे है उससे अलग भी कोई पहलु हो। और आप अपनी संकुचित दृष्टि के कारण उसे देख नहीं पा रहे हो।

चतुरी जी को इसी सन्दर्भ में एक ताजा ताजा ज्ञान हाल फिलहाल ही प्राप्त हुआ। हुआ यू कि चतुरी जी एक दिन मार्केट जा रहे थे ।उन्होंने मार्केट जाने के लिए ई रिक्शा पकड़ा जो एक पच्चीस साल का एक युवा चला रहा था । अब पच्चीस साल की उम्र तो हंसने, खेलने और उड़ने की होती है । लेकिन वह सारी उड़ान को छोड़कर तेज धूप में रोटी कमा रहा था । यह बड़ी बात है वरना यदि संपन्न घर का होता तो पबजी में गाड़ियों को उड़ा रहा होता या आईपीएल में सट्टा लगा रहा होता। आखिर सब बुद्धिजीवी आजकल यही तो शिक्षा दे रहे है । लेकिन इसको रोटी के लाले हैं तो यह रोटी कमा रहा है।

खैर मुख्य मुद्दे पर आते हैं अब युवा है तो चाहे जो भी हो उसका मन तो थोड़ा बहुत उड़ेगा ही, अपने मन को बहलाने का साधन भी खोजेगा । तो उस रिक्शे के चालक ने अपने ई रिक्शा में म्यूजिक सिस्टम भी फिट करवाया था। ताकि उसके दिन बोरियत से ना कटे । और उसमें गाना भी चुनकर बजा रहा था। गाने के बोल थे –चलेला जिला में हमारे शासन ये जानू ..के नामवा ध देबू तो छुई ना प्रशासन ये जानू …गाने के बोल सुनकर चतुरी जी मुस्कुरा पड़े और अपने मन में कहने लगे– बेटा चल चौराहे.. पर फिर तुझे पता चलेगा कि तेरे बोरियत भगाने के एवज में तुझे प्रशासन कहां-कहां छूता है।

चौराहे पर पहुंचते ही युवा ने अपना म्यूजिक सिस्टम ऑफ कर दिया। लगता है भूतकाल में प्रशासन इसको अच्छे से छू चुका था ।इसीलिए यह गलती दोहरा नहीं रहा था । लेकिन कोई अन्य ई रिक्शावाला यह गलती कर गया था । और प्रशासन उसे बजा रहा था । उस समय चतुरी जी को यह एहसास हुआ की रिक्शे में गाना बजाना कोई बहुत बड़ा अपराध नहीं है। लेकिन धूप में खड़ा पुलिस वाला ऐसे रिक्शावाला से ऐसे चिढ़ता है जैसे बैल को लाल कपड़ा दिखा दिया गया है ।और जैसे रिक्शेवाला गाने बजाकर अपनी बोरियत दूर करते हैं ।वैसे ही पुलिस उन्हें मार कर अपनी बोरियत दूर करती है । आखिर खड़े-खड़े चौक चौराहे पर वह भी तो बोर हो जाते हैं । कृपया इसको प्रताड़ना में ना ही गिना जाए तो अच्छा है।पुलिस को भी मनोरंजन का अधिकार है ।

Spread the love

By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.