रेखा शाह आरबी:-
आजकल इंसानी हरकतें देखकर बहुत दिन से मन उदास और उकताया हुआ है। इंसान के.. ना सुबह का भरोसा है.. ना शाम का भरोसा है ..ना काम का भरोसा है.. ना धाम का भरोसा है.. और ना ही इंसानों की जुबान का भरोसा अब रह चुका है । इंसान कहते कुछ हैं, करते कुछ है, करना कुछ चाहते हैं । इंसानों की फितरत देख आजकल उन्हें इंसान कहने में भी शर्म आ रही है । और इंसानों को जानवर भी  नहीं कहा जा सकता।  क्योंकि इससे जानवरों की बेइज्जती होगी ,जानवर अपने नियम कायदे के पक्के होते हैं। अगर वह शाकाहारी है तो शाकाहार ही करेंगे.. यह नहीं कि मौका पाकर हड्डी चबाना शुरु कर दे। इंसानों को समझाना कहना सुनना अब तो व्यर्थ ही लगता है । ऐसी दुनिया में रहकर मैंने आखिर क्या उखाड़ लेना है। बल्कि खुद उखड़ पखड़ जाना पड़ेगा। ।
कभी-कभी तो लगता है भगवान सिर्फ पैदा करने की जिम्मेदारी क्यों उठाएं है। कौन कैसा बनेगा? किसका क्या स्वभाव होगा? इसकी भी जिम्मेदारी आपको उठानी चाहिए।
इंसानों की दुनिया से तंग हूं …इसीलिए अब भूतों की दुनिया तलाश कर रही हूं । सुना उनकी दुनिया में अभी भी नियम कायदे चलते हैं। अभी भी भूत दूसरे भूत का टांग खींचने के फेर में नहीं लगा रहता है । उनके समाज में सामाजिक समरसता एकता इत्यादि विद्यमान है । और वैसे भी भूत मरने से ज्यादा क्या मरेंगे ..बेचारे पहले से ही  खुद मरे हुए हैं। जिंदा तो आजकल इंसान भी नहीं है बस उसका शरीर जिंदा है उसकी आत्मा मर चुकी है। लेकिन भूतों के साथ ऐसा नहीं है उनका जमीर जिंदा है शरीर मर चुका है । इसीलिए अभी इंसानों से ज्यादा मुझे भूत पसंद आ रहे हैं।
सुना है आत्मा के तीन स्वरूप होते हैं जीवात्मा, सूक्ष्मात्मा, प्रेतआत्मा… जो भौतिक शरीर में निवास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं । लेकिन लगता नहीं है किसी इंसान में उसकी आत्मा बची हुई है।  अगर आत्मा बची हुई होती तो धरती पर इतना तांडव नहीं होता और सूक्ष्म आत्मा तो निर्दोष होती है लेकिन इतनी सूक्ष्म  होती है कि भारी भरकम  शरीर के द्वारा किए जा रहे पापों को संभाल नहीं पा रही । और बची प्रेतात्मा… प्रेतात्मा तो मरने के बाद बना जाता है इनको ना ही अपनों का मोह  परेशान करता है और ना ही इनकी रिश्तेदारी नातेदारी बची हुई होती है।  जिसके चलते यह पाप कर्म करें अतः इन की संगत करना ही उचित है।
बस दिक्कत इतना है कि ढूंढने पर भी इनका पता नहीं चल रहा है  प्रेत आत्माएं रहती कहां पर है ? लगता है जनसंख्या के विस्फोट  ने इनको भी बेघर कर दिया है । पहले बरगद वाले भूत, कुए वाला भूत, खंडहर वाला भूत,  हवेली वाला भूत, बगीचे  वाला भूत आदि आदि जगहों के भूत होते थे। अब तो धरती के सभी खाली जगह पर यह इंसानी भूत कब्जा किए बैठे हैं । तो बेचारे भूत वहां से पलायन कर चुके हैं । इंसान भले भूतों की दुनिया में रहने लायक हो चुका है । लेकिन बेचारे भूत अब भी इंसानों की दुनिया में अपने को एडजस्ट नहीं कर पाते हैं ।पहले कहा जाता था कि भूत इंसान का खून पी जाते हैं अब तो यह काम भी इंसानों ने अपने ही हाथ में ले लिया है । अनेक अनेक तरीकों से खून पीने के रास्ते इजाद कर लिए हैं। पहले लोगों के पीछे भूत पड़ते थे.. अब भूतों के पीछे इंसान पड़ा हुआ  है। उनके सारे घर आवासीय स्थल कब्जा कर  लिए हैं।
भूतों के बारे में हॉलीवुड बॉलीवुड चाहे जितना भी नैरेटिव गढ़ ले। चाहे उन्हें जितना भी वीभत्स  और विध्वंस कारी दिखाने की कोशिश कर ले। मैं उन्हें उतना वीभत्स और विध्वंसकारी नहीं मानती। जितना इंसान खुराफात मचाता है । उतना भूतों ने कभी नहीं मचाया है ना  मचा पाएंगे। अब कहने का जमाना आ चुका है… साहब भूतों से नहीं इंसानों से डर लगता है।  इंसानों के बनिस्पत भूत ज्यादा मासूम होते हैं।  इंसान के असली चेहरे देखकर.. घबरा  जाएंगे । इसीलिए मुझे तलाश है एक ऐसे भूत की जो इंसान हो जिसका शरीर भले मर चुका हो लेकिन उसकी इंसानियत जिंदा हो। मुझे पूरी तरह यकीन है एक न एक दिन वह आएगा जिस दिन भूत ही इंसान बचेंगे… बाकी इंसानों की कोई गारंटी नहीं है।

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.