रेखा शाह आरबी:-

चुनाव के मौसम में इंसान तो इंसान ईश्वर को भी चैन से रहने नहीं दिया जा रहा है। इंसान को परेशान करने के लिए दिनभर भोपू माइक और स्वयं भी जाकर उसके कान में दिन भर खुजली किया  जा रहा है। कि हमसे अच्छा जगत में कोई नहीं है । आप हमको वोट दीजिए । और भगवान के भी बार-बार  दरवाजे पर जाकर उन्हे परेशान किया जा रहा है । माथा रगड़कर नेता लोग गुहार लगा रहे हैं कि भगवान मेरी लाज अब तुम्हारे ही हाथों में है। तो कोई भगवान को प्रलोभन भी दे रहा है। भगवान जीत दिला दीजिए मैं आपको सोने का छत्र चढ़ाऊंगा , तो कोई उल्टा सीधा भगवान के बारे में बोलकर भी अपना उल्लू सीधा करना चाहता है। सब एक ही कैटेगरी के हैं । सिर्फ मांगने वाले … भगवान सब समझते हैं कि किसको उनसे मतलब है और किसको उनसे मतलब नहीं है। और कौन उनके कृपा के लायक है और कौन उनके कृपा के लायक नहीं है।
भगवान भी सब देखकर मुस्कुरा रहे हैं कि मेरा ही दिया मुझे देकर अपनी मन वाली यह नेता करना चाहते हैं। खैर भगवान तो भगवान है। जाने किसके यहां धूप और किसके यहां छाया करेंगे। उनकी माया तो वही जाने जब हम इंसानों को नहीं समझ सकते तो भगवान को क्या खाक समझेंगे। लेकिन भगवान भी आजकल धरती की एक-एक घटना से अपडेट रह रहे हैं।
अतः भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से बोलते–” पार्थ.. यह बताओ चुनाव जीतने के लिए क्या-क्या जरूरी होता है?” अर्जुन जानते थे कि भगवान के एक सवाल के हजारों अर्थ और भावार्थ हो सकते हैं। मैं चाहे जितना भी दिमाग लगा लूं भगवान की भेद भरी बात को पूर्णतया तो समझ ही नहीं सकता। मात्र कुछ अंश ही समझ आएगा। इधर भगवान कृष्ण अर्जुन को सोच में देखकर मुस्कुराने लगे और बोले–” हे पार्थ इतना मत सोचो जो मन में आए.. सो बोल दो”।
” हे केशव जहां तक मैं समझता हूं चुनाव जीतने के लिए तो जनता का वोट चाहिए होता है “।
भगवान कृष्ण मुस्कुराने लगे और बोले-” पार्थ जब तुम्हारे समय के शकुनि, दुर्योधन ,दुशासन छल कपट करते थे.. तो क्या लगता है कलयुग में शकुनि, दुशासन, और दुर्योधन की कोई कमी होगी.. और रही बात तुम्हारे जवाब की तो सिर्फ वोट से चुनाव जीतना असंभव है कलयुग में कोई भी चुनाव जीतने के लिए वोट, नोट ,सपोर्ट यह सब लगता है..नहीं है विश्वास तो तुम चुनावी समर में उतर कर एक बार देख लो.. “।
अर्जुन उनके भेद भरी बात को आधा समझे आधा नहीं समझे। वोट और नोट की बात तो समझ गए लेकिन सपोर्ट के बारे में बड़ी दुविधा के साथ भगवान की तरफ देखने लगे। और भगवान अर्जुन की दुविधा देखकर फिर से मुस्कुराने लगे । अर्जुन को  दुविधा में छोड़कर फिर से चुनावी मैदान में उतरे नेताओं की नौटंकी देखकर अपना मनोरंजन करने लगे।

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.