रेखा शाह आरबी:

हम चमत्कारों के देश में रहते हैं । यहा पर रोज एक नवीन चमत्कार होते रहते है ।  चमत्कार को नमस्कार किया जाता है। चमत्कार को भरपूर आभार किया जाता  हैं। हम सभी के बचपने में चमत्कार अक्सर हमें चमत्कृत  कर दिया करते थे। जब जादू का खेल दिखाने वाला मदारी बचपन में हमें मोहित या सम्मोहित कर लेता था । हम सब सोचते रह जाते थे उसने ऐसा कैसे किया । जब वह कुर्ते की जेब से नौ हाथ लम्बा  कपड़ा निकाल देता था।  या अपनी सिर की टोपी में से कबूतर ,खरगोश निकालकर हमारे सामने रख देता था। और इन सब जादू के द्वारा हमें विस्मित कर देता था। और अपना कार्य अर्थात हमसे अपना आर्थिक लाभ सिद्ध कर लेता था।  और हम सम्मोहन की मूर्छा में देखते रह जाते थे। कब हमारी जेब कट गई हमें पता भी नहीं चलता था। और वह भी हमारी इच्छा से होता था। आज भी यही हो रहा है बस उस का प्रारूप बदल चुका है कुछ ज्यादा अंतर नहीं है हम कल भी जादू से चमत्कृत थे। आज भी राजनीति के जादू से चमत्कृत रहते हैं।
इसी तरह हमारे देश की राजनीति में भी नित्य दिन नए-नए चमत्कार होते रहते हैं। देश के नेता अत्यंत चमत्कारी हैं। हमें चमत्कार दिखाने में कोई कोर कसर अवसर नहीं छोड़ते हैं । जनता एक चमत्कार से अभी बोर भी नहीं होती है।  तब तक दूसरा चमत्कार जनता के सामने रख दिया जाता है । और जनता इन चमत्कारों में उलझ कर रह जाती है। और चमत्कार क्रम से आते रहते हैं आते रहते हैं। तब तक इनका आना नहीं रुकता जब तक कि हम अपने जरूरतों, सवालो को अपने मन मस्तिक से  भूल नहीं जाते। चमत्कार किसी के द्वारा भी किया गया हो आखिरकार चमत्कार का काम भी तो यही रहता है। हम अपनी निराशा, हताशा ,अवसाद भूल जाए और उन चमत्कारों के चक्रव्यूह में आनंदित होते रहें।
आप अपने देश में मात्र एक बार .. कितने भी अनपढ़ गरीब, भिखारी से भिखारी इंसान को चुनाव जितवा दीजिए। आप मान लीजिए वह चमत्कारिक रुप से आपके जीवन भर मेहनत करने के अर्जित धन से वह ज्यादा अर्जित करके आपको चमत्कृत कर  सकता है। यह  राजनीति का चमत्कार है । कहावते भी झूठी पड़ जाती है— भूखे पेट भजन न होय गोपाला। राजनीति में जनता से भूखे पेट भी भजन करवाया जा सकता है । बस आपके अंदर चमत्कार करने और सम्मोहन करने की कला होनी चाहिए। और हमारे देश के नेता इन सब कलाओं में पूर्ण रूप से पारंगत हैं। उन्हें पता है हमें कब कौन सी गोली देनी है जिससे हम मदमस्त होकर झूमने लगे. और बस झूमते ही रहे.. ना कुछ और देख  पाए ना कुछ और सुन पाए।ना भूख लगे ना प्यास लगे।
हमारे देश के सत्ता की  कुर्सियों में  चमत्कार है । वो धन की देवी लक्ष्मी जी के पास भी नहीं है। लक्ष्मी देवी जी को किसी के पास जाना होता है। तो उन्हें साधन खोजना पड़ता है। मेहनत का, भाग्य का, पुरुषार्थ का लेकिन कुर्सी को यह सब नहीं खोजना पड़ता।  वह सीधे अपने धारक को  दरिद्र नारायण से धन नारायण बनाने की क्षमता रखती है । अब इसे चमत्कार ना कहिएगा तो क्या कहिए। पहले के जमाने आज के जमाने में चमत्कारों के मायने बदल चुके हैं। आज का चमत्कारी व्यक्ति वही है। जो करता सब कुछ है पर उसकी तरफ सवाल एक भी नहीं उठाया जा सकता है। कि आपके सवालों के जवाब में दस सवाल आपके सामने लाकर खड़ा कर दें और आप उनका उत्तर ढूंढने में व्यस्त रहें मस्त रहें।

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.